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________________ प्रास्ताविक आव्यु, प्रमाणसमुच्चय ए बौद्धाचार्य दिङ्नागनो सौथी महत्त्वना सारग्राही दार्शनिक ग्रंथ गणाय छ । प्रमाणसमुच्चय उपर दिङ्नागे स्वोपज्ञ वृत्ति लखेली छे, ते बघा उपर जिनेन्द्रबुद्धिए विशालामलवती नामनी मोटी टीका लखेली छे, आ बधानां लगभग सातसाआठसो वर्षा पूर्वे थयेलां टिबेटन भाषांतरो (टिबेटने ‘भोट' देश कहेवामां आवे छे, पटले भोट भाषांतरो) मळे छ । तेथी टिबेटन भाषानो देव-गुरुनी परम कृपाथी अभ्यास करीने, टिबेटन भाषाना अत्यंत दुर्लभ ते ते ग्रंथोने अमेरिका, इंग्लेन्ड युरोप तथा जापानमांथी माइक्रोफिल्म-फेाटा आदि रूपे मेळवीने, ते ते टिबेटन भागोनो संस्कृतमां अनुवाद करीने नयचक्रना आठमा अरने विशद करवा अमे प्रयत्न को छे, ते ते टिबेटन अंशोनो संस्कृतमां करेलो अमारो अनुवाद आठमा अरमां 'टिप्पणामां ते ते स्थळे स्थळे आपेलो के के जेथी नयचक्रना ते ते अंशो शुद्ध अने स्पष्ट रीते समजी शकाय । मात्र जैन दर्शनशास्त्रना अभ्यासीओने ज नहि, परंतु बौद्ध, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा आदि दर्शनाना प्राचीन ग्रंथोना अध्ययनमां के ज्यां ते बौद्धसिद्धांतनी चर्चा आवे छे त्यां आ आठमा अर अने तेनां टिप्पणो घणां उपयोगी थशे एवी अमने श्रद्धा छ । आगमप्रभाकर स्व. मुनिराजश्री पुण्यविजयजी महाराजे आ ग्रंथना संपादन माटे प्रेरणा करीने, तेमज संपादन उपयोगी विविध दुर्लभ सामग्री पूरी पाडीने तथा आ ग्रंथना प्रकाशन अंगेनी वधी व्यवस्था करीने घणी ज 'महत्त्वनी कामगीरी करी छे । खरेखर आ ग्रंथ संशोधन, संपादन अने प्रकाशन एमने आभारी छ । वियेनानी युनिवर्सीटिना प्राध्यापक महान् दर्शनशास्त्री स्व. डॉ. एरीखू फाउवाल्नर [Prof. Dr. Erich Frauwallner, Vienna University, Vienna, Europe ], प्राध्यापक श्री वासुदेव विश्वनाथ गोखले [पुना], प्राध्यापक हिदेनारी कितागावा [ Prof. Dr. Hidenori Kitagawa, Nagoya University, Nagoya, Japan ]-आ महानुभावार टिबेटन ग्रथो अगे विविध सूचना द्वारा अथवा टिबेटन ग्रंथो मने मेळवी आपवामां घणी ज सहाय करेली छ । निर्णयसागर मुद्रणालयना पंडित शास्त्रीजी श्री नारायण राम आचायें आ प्रथना अत्यंत जटिल मुद्रणमां खूब ज सहाय घणा प्रेम अने घणी ज काळजीथी करी छ।। १. पृ. ६०७-६०९, ६१४, ६१७, ६२९-६३३, ६३८-६४०, ६५०-६५१, ६६३, ६८३६८५, ७०१, ७२४-७२९ । १. विषयानुक्रममां कईक विस्तारथी आ वात जणावेली छे, जेथी ते ते विशिष्ट स्थानो शोधवामा अभ्यासीओने सरलता रहे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001109
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 2 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1976
Total Pages403
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size11 MB
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