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________________ ५२ प्रस्तावना आदि ते ते नय साथै संबंध धरावता ते समयना बधा ज दार्शनिक विचारोने मल्लवादीए नयचक्रमां समावी लीवा छे । जेम चक्रना आराओमां बच्चे अंतर होय छे तेम आमां पण अंतर छे । दरेक अरमां पर तनुं खंडन अने खमतनी स्थापना आवे छे। आ जे खंडनात्मक विभाग छे ते विध्यादि अरो वच्चेनुं अंतर छे । चक्रमां जेम अनेक मार्गो होय छे तेम आमां पण मल्लवादीए त्रण मांर्गोनी योजना करी छे । टीकाकारे 'मार्ग' शब्दनो 'नेमि' अर्थ करेलो छे, एटले आ नयचकनी नेमि त्रण खंडोनी बनेली छे । पहेला खंडमां 'विधि:' आदि चार नयो छे, बीजा खंडमां 'उभयम्' आदि ४ नयो छे, ज्यारे त्रीजा खंडमां 'नियमः ' आदि चार नयो छे, वळी चकना आराओमां परस्पर अंतर होवा छतां पण जेम बधा आराओ मध्यमां रहेली नाभिमां जोडाएला होय छे तेम आमां पण विधि आदि बार अरोना निरूपण पछी स्याद्वादनाभि आवे छे, तेमां ए प्रमाणे सिद्ध कर्युं छे के आ बधा नयरूपी अरो स्याद्वादरूपी नाभि साथ जोडाएला रहे तो ज प्रतिष्ठित थई शके, नहितर जेम चक्रमां नाभि विना आराओ टकी शकता नथी तेम आ बधा नयवादो स्याद्वादनो आश्रय लीधा सिवाय जरा पण टकी शके तेम नथी । स्याद्वादनाभिनुं ज बीजुं नाम नयचक्रतुंब छे । आ प्रमाणे आ ग्रंथनुं नयचक्र नाम बराबर सार्थक छे । - चक्र आकारे विधि आदि नयवादोनी योजना करवाथी ए पण सूचित थाय छे के आ नयोनुं खंडन-मंडननुं चक्र हंमेशां चाल्या ज करे छे । एमना वादविवादनो कोई अंत ज नथी । 'वादपरमेश्वर' स्याद्वादनो आश्रय लेवामां आवे तो बधा नयोना झगडाओनो तरत ज अंत आवी जाय । जेम परमेश्वरनो आश्रय, लेवाथी. सर्व क्लेशोनो अंत आवी जाय छे तेम वादोमां परमेश्वर अनेकान्तवाद - स्याद्वादनो आश्रय वाथी सर्व विग्रहोनो अंत आवी जाय छे । नयचकनी एक खास विशिष्टता ए छे के विधिवाद, अद्वैतवाद, द्वैतवाद, ईश्वरवाद आदि कोई वादोनुं जैनो तरफथी सीधुं खंडन तेमां नथी । भिन्न भिन्न नयो ज एक बीजानुं खंडन करे छे । ग्रन्थकार तो न्यायाधीशनी जेम तटस्थ दृष्टिथी जोया ज करे छे अने ज्यारे प्रसंग आवे छे त्यारे वादपरमेश्वर स्याद्वादनो आश्रय लेवानुं सूचन करे छे के जेथी तेमना विग्रहनो अंत आवी जाय । छेवटे नयचक्रतुम्बमां तेमणे . जणान्युं छे के विधिनय, विधिविधिनय, विध्युभयनय ( द्वैतवाद - ईश्वरवाद) आदि बैधा नयो जो स्याद्वादनो आश्रय ले तो सत्य छे, नहितर ए बधा एकान्तवादो मिथ्या छे । परस्परसापेक्षता – स्याद्वाद ए बधा. नयोनी सत्यतानो आधार छे. I पूर्वपूर्व नयना मतनुं खंडन करवा माटे उत्तरोत्तर नय उपस्थित थाय छे । आ रीते नयचक्रमां नयोनी गोठवणी छे । आ शैलीथी ते समयना तमाम दार्शनिक विचारोनो व्यवस्थित चिंतनक्रम तथा खंडन-मंडन क्रम १ जुओ प्राक्कथन पृ० ९ टि० १ ॥ २ जुओ पृ० ८३, ८४, ४३६, ७१९, ७२०, ४९७ -२ ॥ ३ आ स्थळे सन्मतितर्कनी बे कारिकाओ ध्यानमां लेवा जेवी छे - ' एवं सव्वेवि गया मिच्छादिट्ठी सपक्खपडिबद्धा । अण्णोष्णणिसिआ उण हवंति सम्मत्तसब्भावा ॥ १२१ ॥ ( भावार्थ - ) सर्वे नयो जो पोतपोताना पक्षना एकान्ते आग्रही होय तो मिथ्यादृष्टि छे, पण जो अन्योन्यसापेक्ष होय तो तेओ साचा छे । 'णिययवयणिज्जसच्चा सव्वणया परवियालणे मोहा । ते पुण अदिट्ठसमओ विभजइ सच्चे व अलिए वा ॥ १२८ ॥ सर्वे नयो पोताना मन्तव्यनुं प्रतिपादन करवामां सत्य होय छे, परंतु बीजानुं खंडन करवा लागे छे त्यारे तेओ निष्कळ जाय छे। जे मनुष्यने शास्त्रना रहस्यनुं ज्ञान नथी ते माणस ज 'आ अथवा आ नय असत्य ज छे' एवो विभाग करे छे, – अर्थात् शास्त्रना रहस्यने जाणनार मनुष्य 'आ नय सत्य ज छे अथवा आ नय असत्य ज छे' एवो विभाग करतो नथी । जुओ नयचक्रवृत्ति पृ० ३५ पं० २३-२६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001108
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1966
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size19 MB
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