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________________ ५ प्रस्तावना प्रतिपादन छे, अनेकान्तजयपताका आदि ग्रंथोमां सत्-असत् नित्य-अनित्य वगेरे एकांतवादोनुं निराकरण करीने अनेकान्तवादनी स्थापना करी छे, ज्यारे नैयोना निरूपणद्वारा एकान्तवादी सर्वदर्शनोनुं निराकरण तथा जैनदर्शनसम्मत अनेकान्तवादनी स्थापना ए नयचक्रनो मुख्य विषय छ । अनेकात्मक वस्तुना एक देश- अवधारण करनारी दृष्टिने नय कहेवामां आवे छे । आवा नयो अनंत छे, छतां जैनाचार्योए ते बधायनो संक्षेप सात नयोमा करेलो छे, जेमके १ नैगम, २ संग्रह, ३ व्यवहार, ४ ऋजुसूत्र, ५ शब्द, ६ समभिरूढ, ७ एवंभूत । आ ७ नयोनो पण १ द्रव्यार्थिक तथा २ पर्यायार्थिक एम बे नयोमा समावेश करवामां आवे छ । आ नयवाद ए जैनदर्शननो तद्दन स्वतंत्र तथा अत्यंत महत्वनो विशिष्ट विषय छे अने ए विषे जैनसाहित्यमा पुष्कळ ग्रंथो रचायेला छ । प्रस्तुत नयचक्रग्रंथ नयविषयक होवा छतां एमां जे नयो, निरूपण छे ते भिन्नप्रकारना विधि आदि १२ नयो छे, तेमनां नाम नीचे प्रमाणे छ १ विधिः, २ विधिविधिः, ३ विध्युभयम् , ४ विधिनियमः, ५ उभयम् , ६ उभयविधिः, ७ उभयोभयम् , ८ उभयनियमः, ९ नियमः, १० नियमविधिः, ११ नियमोभयम् , १२ नियमनियमः । आ विधि आदि बार नयोनो जैनप्रवचनप्रतिपादित सात नयो साथे पण संबंध तो छ ज । जैन प्रवचनमा मूळनय बे छे १ द्रव्यार्थिक तथा २ पर्यायार्थिक । प्रारंभना विधि आदि छ नयो द्रव्यार्थिकनयना भेदो' छे, ज्यारे पाछळना उभयोभयम् आदि छ नयो पर्यायार्थिकनयना भेदों छे । ते ज प्रमाणे विधि आदि बारे नयोनो नैगमादि सात नयोमां पण यथायोग्य रीते अंतर्भाव थई जाय छ । विधि आदि कया नयनो अंतर्भाव नैगमादि कया नयमां थाय छे ए विषे ग्रंथकारे ते ते विधि आदि नय निरूपणना अंते जणाव्यु छे, तेनुं सामान्य दिशासूचन आ प्रमाणे छे ___पहेला विधिनयनो अंतर्भाव व्यवहार नयमां थाय छे, बीजा, त्रीजा तथा चोथा नयनो अंतर्भाव संग्रहनयमां थाय छे, पांचना तथा छट्ठा नयनो अंतर्भाव नैगमनयमां, सातमा नयनो ऋजुसूत्रमां, आठमा तथा नवमानो शब्दनयमां, दशमानो समभिरूढनयमां तथा अगिआरमा अने बारमा नयनो अंतर्भाव एवंभूत नयमां थाय छे । एक अरमां एक नयनुं निरूपण ए रीते नयचक्रना बार अरमां विधि आदि बार नयोनू निरूपण छ। आ जातना बार नयोनुं निरूपण मात्र नयचक्रमां ज जोवामां आवे छे, ए उपरथी आचार्यश्री मल्लवादीनी चिंतनशैली तथा प्रतिपादनशैली केवी अपूर्व हती, तथा तेमनी प्रतिमा केवी अद्भुत हती ए स्पष्ट जणाई आवे छे। नयचकनी रचनाशैली __ग्रंथकारे 'नयचक्र' नाम बराबर सार्थक राखेखें छे । जेम रथादिना चक्रमां बार आरा होय छे तेम आमां पण अरात्मक बार प्रकरणो छ । एक एक अरमां अनुक्रमे विधि आदि बार नयोना निरूपणमा विधि १ "अत एव श्रीहरिभद्रसूरिपादः श्रीमदभय देवपादैश्च परपक्षनिरासे तैर्यतितमनेकान्तजयपताकायां तथा सम्मतिटीकायामिति । अत एव श्रीमन्महामलवादिपादैरपि नयचक्र एवादरो विहित इति न तैरपि प्रमाणलक्षणमाख्यातं परपक्षनिरासादपि स्वपक्षस्य पारिशेष्यात् सिद्धिरिति ।"-जिनेश्वरसूरिकृत स्वोपज्ञ प्रमालक्ष्मवार्तिकवृत्ति पृ० ८९ ॥ २ यथोक्तम्-“द्रव्यस्यानेकास्मनोऽन्यतमैकात्मावधारणमेकदेशनयनान्नयः"-नयचक्रवृत्ति पृ० १०५ २४ ॥ ३ जुओ नयचक्रवृत्ति पृ० ७५ १२॥ ४ जुओ सम्मतितर्कनी त्रीजी गाथा ॥ ५ जुओ पृ०४५४ पं. १ वगेरे॥ ६ जुओ पृ०४५५५०६ वगेरे॥ ७ जुओ पृ०४५३ पं० ७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001108
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1966
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size19 MB
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