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________________ प्रस्तावनी त्यांसुधी घणा परिश्रमे पण मेळवीने एमणे मने पुरा पाड्या छे । जो के आ ग्रंथना संशोधन अने संपादननी संपूर्ण जवाबदारी मारी एकलानी ज छे, छतां विपुल द्रव्यना व्ययथी साध्य आ ग्रंथना मुद्रण-प्रकाशननी बधी व्यवस्था तेमणे ज करी छे, एटले आ ग्रंथना मुद्रण तेमज प्रकाशननी बधी व्यवस्थाना योजक तरीके तेमनो महत्त्वनो फाळो छ । ए बद्दल हुं तेमनो अत्यन्त आभारी छु । संस्कृत-हिन्दी-बंगाली-चीनी-टिबेटन-जर्मन-फ्रेंच तथा इंग्लीश आदि अनेक भाषाओना ज्ञाता डॉ. एरी फ्राउवल्नर ( Prof. Dr. E. Frauwallner ) के जेओ ओस्ट्रीयामां वियेनानी युनिवर्सिटीमां भारतीय विभागना प्रमुख छे अने भारतीय दर्शनशास्त्रोना मुख्य अध्यापक छ तेमणे बहु मनन करीने आ ग्रंथनी इंग्लीश प्रस्तावना लखी छे, प्रमाणसमुच्चयखोपज्ञवृत्तिना कनकवर्मकृत टिबेटन भाषांतरना पेकिंग एडिशनना फोटा पण पेरीसमांथी मेळवीने मोकली आप्या छे, तेमज भोट परिशिष्टमां अनेक उपयोगी सूचनाओ करी छ । पुनाना प्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान् अने संस्कृत-पाली चीनी-टिबेटन-जर्मन-फ्रेंच-इंग्लीश आदि भाषाओना ज्ञाता डॉ. वासुदेव विश्वनाथ गोखले महाशये टिबेटन ग्रंथो वगेरे दुर्लभ सामग्री अमारा माटे मेळववा निःस्वार्थ भावथी घणो प्रयत्न कर्यो हतो, टिबेटन भाषा शीखवा माटे पण खास प्रेरणा एमणे करेली हती, भोट परिशिष्ट छपाती वखते पण एमणे घणी उपयोगी सूचनाओ करी हती । जापानमा सेन्डाइ शहेरमा आवेली टोहोकु युनिवसिटीमां भारतीय विभागमां मुख्य अध्यापक, जापानमां जैनसाहित्यना खास अभ्यासी डॉ. येन्शो कानाकुरा ( Prof. Dr. Yensho Kanakura) तथा जापाननी नागोया युनिवर्सिटीमां भारतीय विभागना अध्यापक डॉ. हिंदेनोरी कितागावाए ( Dr. Hidenori Kitagawa) प्रमाणसमुच्चयखोपज्ञवृत्ति उपर जिनेन्द्रबुद्धिरचित ९००० श्लोकप्रमाण विशालामलवती टीकाना टिबेटन भाषांतर वगेरेना देगें एडीशनना दुर्लभतम फोटाओ भेट मोकली आप्या हता। डॉ. हिदेनोरी कितागावाए प्रमाण समुच्चय खोपज्ञवृत्तिना बन्ने टिबेटन भाषान्तरोना केटलाक भागनी नाथंग एडीशननी घणी महेनते Mimeograph करेली कोपी पण मोकली आपी हती। अमेरिकन विद्वान श्री. वोल्टर हार्डिंग माउरर ( Mr. Walter H. Maurer ) नी प्रेरणाथी अमेरिकामा वोशिंग्टनमा आवेली कोंग्रेस लायब्रेरीए (The Library of Congress, U. S. A.) टिबेटन भाषांतरना छोनी एडीशनना चालीस जेटला टिबेटन ग्रंथोनी माइक्रोफिल्म घणा परिश्रमे तैयार करीने भेट मोकली आपी हती। विद्वद्वर श्री. प्रह्लादप्रधाने अभिधर्मकोश भाष्यना अमारे जरूरी हता ते ते अतिमहत्त्वना अंशो फोटा ऊपरथी लखीने घणाज सौजन्यथी मोकली आप्या हता। म्हैसूरना श्री रंगाखामी आयंगर ( Dr. H. R. R. Iyengar ) तथा जापानना Prof. H. Kimura वगेरे जे विद्वानो पासेथी टिबेटन ग्रंथो मळेला तेमनो नामोल्लेख अमे भोटपरिशिष्टमां टिपृ० ९७ मां को छे । आ उपर्युक्त बधा सज्जन महाशयोने हुं अंतःकरण पूर्वक धन्यवाद आपुं छु । निर्णयसागर प्रेसना मेनेजर, पंडितजी श्री. नारायण राम आचार्य तथा कंपोझिटरोए नयचक्र प्रेसमां छपातुं हतुं ते वखते ते ते पानामां मूळ, टीका तथा टिप्पणने यथास्थाने गोठवा माटे घणी घणी महेनत उठावी १ टिबेटन भाषांतरोना देर्गे आदि विविध संस्करणोना परिचय माटे जुओ गायकवाड सीरीजमा छपाएला अमे संपादित करेला वैशेषिक सूत्रनुं सातमु परिशिष्ट पृ. १५५-१६६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001108
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1966
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size19 MB
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