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________________ प्रस्तावना कोष्टकमां अमे उमेर्यो छे । हस्तलिखित प्रतिओमां विद्यमान अशुद्ध पाठने ज्यां बनी शक्युं त्यां शुद्ध करवानो अमे प्रयत्न कर्यो छे, पण ज्यां अमे शुद्ध करी शक्या नथी अने ज्यां अमने खास शंका छे त्यां अशुद्ध पाठनी आगळ (?) आ प्रमाणे प्रश्नचिन्ह आप्युं छे, जुओ पृ० २५७ पं० १४ । हस्तलिखित प्रतिओमा ज्यां अशुद्ध पाठो छे अने शुद्ध पाठोनी निश्चित संभावना ज्यां अमे करी शक्या नथी त्यां अमे कल्पेला शुद्ध पाठो ( ) आवा कोष्टकमां गोठवीने प्रश्न चिन्ह साथे टिप्पणमां ज खास करीने घणी जग्याए दर्शाव्या छे, जुओ पृ० १०६ टि० १० वगेरे । केटलेक स्थळे बीजी रीते पण पाठ होई शके एम अमने लाग्युं छे, त्यां ए पण टिप्पणोमां जणाव्युं छे, जुओ पृ० १४ टि० ९, पृ० १८ टि० १३, पृ० ७२ टि० ८ वगेरे । नयचक्र छपाती वखते महत्त्वना जे पाठो अशुद्ध रही गया अने पाछळथी अमारा ध्यानमा आव्या ते पाठो नयचक्रनी पाछळ जोडेलां टिप्पणोमां सुधारी लीधा छ । मुद्रणदोषथी अने प्रूफ वांचतां दृष्टिदोषथी जे अशुद्धिओ रही गई ते अमे खास करीने शुद्धिपत्रकमां सुधारी लीधी छे, एटले वाचकोए नयचक्रनी पाछळ जोडेलां टिप्पणो तथा शुद्धिपत्रकनो खास उपयोग करवा पूर्वक आ ग्रंथy वांचन करवू एवी अमारी खास विनंति छ । ___ आ प्रमाणे अनेक वर्षो सुधी चिंतन, मनन अने परिश्रम करीने अनेकविध साहित्यना उपयोग करवा पूर्वक आ ग्रंथ- सांगोपांग संशोधन अने संपादन करवा अमे यथामति सर्व प्रयत्न कर्यो छे। छतां नयचक्र मूळना अभावने लीधे, हस्तलिखित प्रतिओना अशुद्धिबाहुल्यने लीधे, संशोधनमा उपयोगी तथाविध सामग्रीना अभावने लीधे, अमारी मतिमंदताने लीधे, तथा क्वचिद् दृष्टिदोषथी प्रूफ वांचवा वगेरेमां थएली असावधानताने लीधे आ ग्रंथमा जे काई अशुद्धिओ रही गई होय तेनुं स्वयं प्रमार्जन करीने हंस जेम क्षीर अने नीरनुं पृथक्करण करीने क्षीरने ग्रहण करे छे तेम विद्वानो आ ग्रंथy अध्ययन अने मनन करीने अमारा परिश्रमने सफल करे एवी अमारी हार्दिक नम्र प्रार्थना छ । धन्यवाद 'आ नंथनुं संशोधन अने संपादन सांगोपांग अने बहु व्यवस्थित रीते थाय' एवी मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराजनी चिरकाळथी उत्कट इच्छा हती, एटले तेमनी खास प्रेरणाथी में आ कार्य खीकार्यु हतुं । ज्यारथी में आ कार्य स्वीकार्यु त्यारथी मांडीने अत्यार सुधीमां आ अतिदुष्कर कार्यने पार पाडवा माटे तेमणे मने घणीज वार प्रोत्साहन आप्युं छे । नयचक्रवृत्तिनी बधीज हस्तलिखित प्रतिओ घणा घणा परिश्रमे अनेक स्थानेथी एमणेज मेळवीने मारा उपर मोकली आपी हती । पा० प्रतिनी कोपीने भा० प्रति साथे मेळवी भा० प्रतिमा आवतां पाठान्तरोनी नोंध पण तैयार करीने एमणे मोकली हती। पाटण अने जेसलमेर वगेरेना ज्ञान भण्डारोमा रहेली विशेषावश्यकभाष्यनी खोपज्ञटीका, कोट्टार्यगणिकृत टीका, चन्द्रानन्दरचितवृत्तिसहित वैशेषिकसूत्र, न्यायभाष्य, न्यायवार्तिक, न्यायकंदली, सांख्यकारिकावृत्ति, तत्त्वसंग्रहपंजिका वगेरे ग्रंथोनी प्राचीन हस्तलिखित प्रतिओना आदर्शो के जेनो आ ग्रंथनां संपादनमा अमे अनेक स्थाने उपयोग कयों छे ए पण एमनी पासेथी ज मळी शक्या छ । किं बहुना ? आ ग्रंथना संशोधनमा जे जे ग्रंथोनी जरुर पड़े ते ते ज्यांसुधी बनी शके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001108
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1966
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size19 MB
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