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________________ ८८ प्रस्तावना छे, ते उपरांत जुदा जुदा टाईपोमा आ ग्रंथ व्यवस्थित रीते अने शुद्धपणे छपाय ते माटे तेमणे घणीज काळजी लोधी छे । तेमने अंतःकरणथी मारा खूब खूब आशीर्वाद छे । आत्मानंद सभाना कार्यवाहको प्रॉ. खीमचंदभाई चांपसी तथा श्री फत्ते हचंद झवेरभाईए आ ग्रंथनुं मुद्रण अने प्रकाशन सुंदर अने शीघ्र थाय ते माटे अंगरी घणो रस अने प्रयत्न सेव्यो छे, तेने हुं भूली शकुं तेम नथी ज, तेमने अंतःकरणथी मारा खूब खूब आशीर्वाद छे । भगवान् गुरुदेवना उपकारो अंतमां मारे खास संस्मरण मारा गुरुदेव श्रीतुं करवानुं छे । आ आखोय ग्रंथ तैयार करवामां प्रातःस्मरणीय परमपूज्य पूज्यपाद परमाराध्य मारा गुरुदेव श्री १००८ मुनिराज श्री भुवनविजयजी महाराजानी मने अनुपम सहाय मळी छे । सटीक पीस्तालीश आगमो अने धर्मशास्त्रो ए एमनो मुख्य विषय छे । ए विषयनुं एमनुं आजीवन परिशीलन अने तलस्पार्श ज्ञान छे । एटले प्रस्तुत ग्रंथना संशोधनमां ज्यारे ज्यारे ए अंगे जरूर पडती त्यारे त्यारे एमनी पासेथी मने मार्गदर्शन मल्युं छे । बळी आ ग्रंथनं संशोधन- संपादन कार्य में ओश्रीनी सम्मतिथी ज स्वीकार्यं हतुं । छाती दुःखो जाय त्यां सुधी सतत बोलवुं पडे छतां जरापण कंटाळ्या विना उल्लास पूर्वक आ आखाय ग्रंथना प्रुफोनुं चार चार वार तथा पांच पांच बार बांचन एम एकलाए ज कराव्युं छे । तदुपरांत मारी अंतरंग तथा बहिरंग तमाम चिंताओनो भार आ बधा वर्षोमां तेओश्रीए ज उठाव्यो छे । आ ग्रंथना संशोधन- संपादनमां उपयोगी हस्तलिखित तेमज मुद्रित विविधविषयक दुर्लभ ग्रन्थो अने टिबेटन ग्रंथोने मेळववा माटे तेमज साचववा माटे तेमणे पार विनानी रात - दिवस चिंता उठावी छे अने घणोज परिश्रम लीधो छे । आ अंगे एमणे उठावेलां विविध कष्टोनो हुं ज्यारे ज्यारे विचार करुं हुं त्यारे त्यारे आनंद, आश्चर्य अने बहुमान पूर्वक तेमना चरणोमां मारुं मस्तक नमी पडे छे । तेमनां अपार वात्सल्य, अनंत कृपा तथा संपूर्ण सहायथीज आ ग्रन्थ हुं निश्चितरूपे तैयार करी शक्यो छु । आ ग्रंथ तैयार करवा निमित्ते तेओश्रीए अनेक वर्षो सुधी जे परिश्रम उठाव्यो छे, जे भोग आप्यो छे, रात-दिवस जे अपार चिंताओ सेवी छे अने मने अनेक रीते जे सहाय करी छे तेनुं वर्णन शब्दो द्वारा माराथी थई शके तेमज नथी, वळी तेओ पूर्वास्थाना मारा परमपूज्य पिताश्री छे अने अत्यारे श्रमण अवस्थामा मारा तारक गुरुदेव श्री छे । पिता तरीके मारा उपर एमनो अनंत उपकार छे ज, मारा जीवनने एमणे ज धर्मसंस्कारोथी वासित कर्यु छे, संसार समुद्र तरवा माटे नौका समान भागवती दीक्षा आपीने तेमज दीक्षा आप्या पछी पण घणाज परिश्रम अने काळजीपूर्वक ग्रहणशिक्षा अने आसेवना शिक्षा मने ग्रहण करावीने एमणे मारा उपर जे अनंत उपकारो कर्या छे एनुं वर्णन कोई पण रीते थई शके तेम नथी । मारो अंतरंग तथा बाह्य समग्र जीवन विकास तेमनी अमृतवर्षिणी कृपादृष्टि अने एमना आशीर्वादने ज परमवत्सल परमपूज्य परमाराध्य मारा गुरुदेव तथा मारा पिताश्री पूज्यपाद श्री महाराजाना अनंत उपकारोनुं वर्णन करवा माटे मारी पासे शब्दो ज नथी । आभारी छे । आवा अनंत उपकारी १००८ भुवनविजयजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001108
Book TitleDvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Original Sutra AuthorMallavadi Kshamashraman
AuthorSighsuri, Jambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1966
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nay, & Nyay
File Size19 MB
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