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પ્રસ્તાવના
४. उत्तराध्ययनसूत्रचूर्णिके प्रणेता कौटिकगणीय, वज्रशाखीय एवं वाणिजकुलीय स्थविर गोपालिक महत्तरके शिष्य थे । इस चूर्णिकारने चूर्णिमें अपने नामका निर्देश नहीं किया है। इनका निश्चित समयका पता लगाना मुश्किल है । तथापि इस चूर्णिमें विशेषावश्यकभाष्यकी स्वोपज्ञ टीकाका सन्दर्भ उल्लिखित होने के कारण इसकी रचना जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणके स्वर्गवासके बादकी है। विशेषावश्यकभाष्यकी स्वोपज्ञ टीका, यह श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमणकी अन्तिम रचना है। छट्ठे गणधरवाद तक इस टीकाका निर्माण होने पर आपका देहान्त हो जानेके कारण बादके समग्र ग्रंथकी टीकाको श्रीकोट्टार्यवादी गणी महत्तरने पूर्ण की है।
५. जीतकल्पबृहच्चूर्णी के प्रणेता श्रीसिद्धसेनगणी हैं। इस चूर्णिके अन्तमें आपने सिर्फ अपने नामके अतिरिक्त और कोई उल्लेख नहीं किया है। श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमणकृत ग्रन्थके उपर यह चूर्णी होने के कारण इसकी रचना श्रीजिनभद्रगणिके बादकी स्वयंसिद्ध है। इस चूर्णिको टिप्पनककार श्री श्रीचन्द्रसूरिने बृहच्चूर्णीनामसे दरशाई है.
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नत्वा श्रीमन्महावीरं परोपकृतिहेतवे । जीतकल्पबृहच्चूर्णेर्व्याख्या काचित् प्रकाश्यते ॥ १ ॥
उपरनिर्दिष्ट सात चूर्णीयोके अतिरिक्त तेरह चूर्णीयो के रचयिताके नामका पता नहीं मिलता है। तथापि इस चूर्णीयोके अवलोकनसे जो हकीकत ध्यानमें आई है इसका यहां उल्लेख कर देता हूं ।
यद्यपि आचाराङ्गचूर्णी और सूत्रकृताङ्गचूर्णीके रचयिताके नामका पता नहीं मिला है तो भी आचाराङ्गचूर्णीमें चूर्णिकारने पंद्रह स्थान पर नागार्जुनीय वाचनाका उल्लेख किया है, उनमें से सात स्थान पर “भदंतनागज्जुणिया " इस प्रकार बहुमानदर्शक “भदन्त” शब्दका प्रयोग किया है, इससे अनुमान होता है कि ये चूर्णिकार नागार्जुनसन्तानी कोई स्थविर होने चाहिए । सूत्रकृताङ्गचूर्णीमें जहां जहां नागार्जुनीय वाचनाका उल्लेख चूर्णिकारने किया है वहां सामान्यतया नागज्जुणिया इतना ही लिखा है। अतः ये दोनों चूर्णिकार अलग अलग ज्ञात होते हैं। सूत्रकृताङ्गचूर्णीमें जिनभद्रगणीके विशेषावश्यकभाष्यकी गाथायें एवं स्वोपज्ञ टीकाके सन्दर्भ अनेक स्थान पर उद्धृत किये गये हैं, इससे इस चूर्णिकी रचना श्रीजिनभद्रगणिके बादकी है; तब आचाराङ्गचूर्णीमें जिनभद्रगणिके कोई ग्रन्थका उल्लेख नहीं है, इस कारण इस चूर्णीकी रचना श्रीजिनभद्रगणिके पूर्वकी होनेका सम्भव अधिक है ।
भगवतीसूत्रचूर्णिमें श्रीजिनभद्रगणीके विशेषणवतीग्रन्थकी गाथाओंके उद्धरण होनेसे, और कल्पचूर्णीमें साक्षात् विसेसावस्सगभासका नाम उल्लिखित होनेसे इस दोनों चूर्णियों की रचना निश्चित रूपसे श्रीजिनभद्रगणीके बाकी है।
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दशासूत्रचूर्णीमें केवलज्ञान - केवलदर्शनविषयक युगपदुपयोगादिवादका निर्देश होने से यह चूर्णी भी श्रीजिनभद्रगणीके बादकी है।
आवश्यकचूर्णिके प्रणेताका नाम चूर्णीकी कोई प्रतिमें प्राप्त नहीं है । श्रीसागरानन्दसूरि महाराजने अपने सम्पादन में इसको जिनदासगणिमहत्तरकृत बतलाई है । प्रतीत होता है कि- आपका निर्देश श्रीधर्मसागरोपाध्यायकृत तपागच्छीय पट्टावलीके उल्लेखको देख कर है, किन्तु वास्तवमें यह सत्य नहीं है । अगर इसके प्रणेता जिनदासगणि होते तो आप इस प्रासादभूत महती चूर्णिमें जिनभद्रगणिके नामका या विशेषावश्यकभाष्यकी गाथाओंका जरूर उल्लेख करते । मुझे तो यही प्रतीत होता है कि- इस चूर्णीकी
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