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________________ [पुरुषार्थसिद्धय पाय nananananananananananananananana nannananananananananananna nananana के बलसे दूसरे राजापर विजय पाता है उसी प्रकार श्रीमुनिमहाराज पंच महावत, तीन गुप्ति, पंच समिति, इन्द्रिय-दमन, कषाय निग्रह, दशधर्म आदि अनेक महापराक्रमी योद्धाओंके बलसे चिरकालके शत्रु कर्मराज पर विजय पाकर मोक्षमहलमें सदाके लिए निराकुलतासे निवास करते हैं । इस प्रकारकी शूरवीरता उन कर्म-विजयी मुनियोंमें ही पाई जाती है; इसलिए वे ही साक्षात् मोक्षलक्ष्मी के स्वामी बननेके पात्र हैं । इसीसे उनकी अलौकिकवृत्ति बतलायी गयी है। एकदेश व्रतका उपदेश किसे देना ठीक है ? बहशः समस्तविरतिं प्रदर्शितां यो न जातु गृहणाति। तस्यैकदेशविरतिः कथनीयाऽनेन वीजेन ॥१७॥ ____अन्वयार्थ-( बहुशः ) अनेकवार ( प्रदर्शिता ) दिखलायी गयी ( समस्तविरतिं । सर्वथा त्यागरूप मुनियोंकी महावृत्तिको ( यः ) जो पुरुष (जातु) कदाचित् ( न गृहणाति ) नहीं प्रहण करता है ( तस्य ) उस परुषके लिये ( एकदेशविरति ) एकदेश त्यागका उपदेश ( अनेन वोजेन ) इस वीजसे-इस हेतुसे-नीचे लिखेहुए हेतुसे ( कथनीया ) कहना चाहिये। विशेषार्थ- जो पुरुष उपदेश ग्रहण करनेका पात्र है, उस पुरुषको सबसे पहले ऊंची श्रेणीका अर्थात् मुनिधर्मका उपदेश देना चाहिए । कारण, आत्माओंमें सबसे ऊंचे मार्ग पर जानेकी शनि विद्यमान है, आवश्यकता केवल उत्तेजनाकी है। जहां आदर्श संयमियोंका उत्तेजनापूर्ण सदुपदेश मिला कि चट आत्माओंका ऊँचा सुधार हुआ । मुनिवृत्ति एवं सकलचारित्र धारण करनेके लिये किसीको किसीसे कुछ चाहना नहीं करनी पड़ती, किसी सामग्रीकी योजना नहीं करनी पड़ती । चारित्र आत्माका निजतत्त्र है, वह प्रत्येक आत्मामें विद्यमान है । परन्तु मोहवश प्रगट नहीं है, कमों से ढका हुआ है । जब किसी सदुपदेष्टाका निमित्त मिला, अथवा सत्समागमकी प्राप्ति हुई, तभी उस निमित्तको पाकर आत्माएँ कठिनसे कठिन चारित्र धारण करनेके लिए तत्पर हो जाती हैं। जिन पुरुषोंसे स्वप्नमें भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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