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________________ [ पुरुषार्थसिद्धय पाय ran सल्लेखनाके अतीचार जीवितमरणाशंसे सुहृदनुरागः सुखानुबंधश्च । सनिदानः पंचैते भवंति सल्लेखनाकाले ॥१६॥ अन्वयार्थ-(जीवितमरणाशंसे ) जीने और मरनेकी आकांक्षा करना, ( सुहृदनुरागः । मित्रों में अनुराग करना, ( सुखानुबंधश्च ) सुखोंका स्मरण करना, ( सनिदानः ) निदान बंध बांधना, ( एते पंच ) ये पांच अतीचार ( सल्लं खनाकाले भवति ) सल्लेखनाके समय में होते हैं। विशेषार्थ - जिससमय मरणकाल होता है उसीसमय सल्लेखना धारण की जाती है । जिसने मरनेके पूर्व सल्लेखना तो धारण कर ली हो परंतु मनमें यह भाव उसके हो कि अभी कुछ काल और भी जीता रहता या जीता रहू तो अच्छा है ऐसी जीनेकी अभिलाषा रखना जीविताशंसा नामका पहला अतीचार है। यह एक दोष है कारण कि सल्लेखना ममत्व भाव छोड़नेकेलिये धारण की जाती है उसमें जीनेकी अभिलाषा रखना यह सांसारिक ममत्व है इसलिये उसका यह अतीचार है । ___इसीप्रकार सल्लेखना धारण करनेके पीछे कुछ वेदना होती हो, नग्न शरीर रखनेसे ठंड लगती हो या किसीप्रकारकी पीड़ा उपस्थित हो गई हो तो वैसी अवस्थामें उसे शांतिसे सहन नहीं करके यह विचार हृदयमें होना कि जल्दी ही मरण हो जाय तो मैं इस बाधासे मुक्त हो जाऊ ऐसा विचार भी शारीरिक ममत्वको सिद्ध करता है इसलिये यह मरणाशंसा भी अतीचार है। शंका हो सकती है कि वह तो शरीरको जल्दी छोड़नेकी इच्छा करता है फिर उसके शारीरिक ममत्व कैसे कहा जा सकता है । इसके उत्तरमें यह समझ लेना चाहिये कि यदि उसके शारीरिक ममत्व नहीं होता तो शरीरमें होनेवाली वेदनासे जल्दी मरनेकी इच्छा नहीं करता, जब शरीरसे ममत्व परिणाम नहीं रखता है तब कितनी ही वेदना क्यों न हो, उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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