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________________ १६२ ] [ पुरुषार्थसिद्ध पाय रहते हैं वे मादक एवं अमक्ष्य हैं, उसीप्रकार रात्रि में बनाया हुआ भोजन यदि दिन में भी खाया जाय तो उसमें मांसभक्षणका अतीचार-दोष आता है । उनका ग्रहण करना निषिद्ध है, परंतु अष्टमूलगुण का धारी उन्हें ग्रहण कर सकता है, वह मांसमदिराका त्यागी हैं आसवादिका त्यागी नहीं है. परंतु भोगोपभोगपरिमाणत्रतवाला उन आसव अवलेह आदिको भी नहीं महणकर सकता, वहां पर मदिरा मांस मधुके अती चारों को भी उससे त्याग कराया जाता है । अतीचारत्याग विवक्षासे ही भोगोपभोगपरिमाणत्रतमेंमदिरा मांस मधुका त्याग कराया जाता है साक्षात् नहीं, साक्षात् त्याग तो उनका अष्टमूलगुणोंमें पहले ही करा लिया जाता है । सचितपदार्थों का भक्षण कर लेना पहला अतीचार यह हैं । इसका अभिप्राय यही है कि जो पदार्थ सचित्त हैं फल पत्ते आदि वनस्पति और जल इनका भूलसे अथवा भ्रमसे खा लेना, मूलसे ग्रहण यों हो जाता है कि थाली में परोसने वालेने अन्य भोज्य वस्तुओंके साथ हरी वस्तु भी परोस दी, जीमनेवालेने चित्तकी अनस्थिरता एवं असावधानी से उसे भी खा लिया तो यह भूलसे सचित्तग्रहण समझना चाहिये । भ्रमसे यों हो जाता कि किसीने पके हुए फल केला आम अनार भी परस दिये, जीमनेवाला उन्हें अचित्त समझकर खा गया, वैसी अवस्था में भ्रमसे सचित्तग्रहण समझना चाहिये. सर्वथा पका हुआ फल अचित्त होजाता है परंतु जो पूर्ण नहीं पका है परंतु परिपक्कसरीखा दीखता है वह सचित है, वैसे फलोंका ग्रहण सचित्तत्यागियों को नहीं करना चाहिये । इसप्रकार सचित्तग्रहण भूल और भ्रम से भोगोपभोग परिमाणत्रतका अतीचार है भूल और भ्रमके कारण उसे अकाचारकोटि में नहीं लिया गया, अन्यथा साक्षात् सचित्तग्रहण उसके त्यागीका अनाचार ही होगा । सचित्तसे मिले हुए पदार्थका ग्रहण करना यह दूसरा अतीचार है, जैसे भोजन में कोई हरी चीज मिल गई हो तो उसेभीखा जाना यहांपर भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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