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________________ पुरुषार्थमिद्धय पाय [ ३६३ mmmmmmmmmmmmmmianmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm असावधानीसे ऐसा होना अतीचार समझना चाहिये । जानबूझकर खा जाना तो अनाचार होगा। सचित्तसंबंध तीसरा अतीचार है, जैसे हरी पत्तलमें भोजन खा लेना अथवा हरी पत्तलसे ढका हुआ भोजन खा लेना अर्थात् जिन पदार्थों का मचित्तसे संबंध हो उन्हें खाना सचिलसंबंध कहलाता है। दुःपक्व आहार करना चौथा अतीचार है इसका यह अभिप्राय है कि जो वस्तुयें ठीक ठीक नहीं तैयार हुई हैं अग्निपर जिनका पूरा पाक नहीं हुआ है । कुछ कच्ची हैं कुछ पक्की हैं वे सब दुःपक्व कहलाती हैं, ऐसी वस्तुओंका भक्षण करना भी अतीचार है। शंका हो सकती कि अतीचार तो दोष है, दुःपक्व आहारसे क्या दोष आता है, उसके करनेसे किसी जीवकी बाधा भी नहीं होती फिर उसे अतीचार दोष के नामसे क्यों कहा गया ? इसके उत्तरमें यह समझना चाहिये कि दोष एक प्रकारका ही नहीं होता अथवा जिसमें जीवरक्षा भी पलती हो परन्तु परिणामोंमें केवल विकार आता हो तो वह भी दोष समझा जाता है । तथा कोई दोष साक्षात् होता है कोई परंपरा भी होता है । दुःपक्व आहार परंपरा धर्म में बाधा पहुंचाता है, कारण वैसा आहार करनेसे शरीरमें अनेक रोगोंके होने की पूर्ण संभावना रहती है, पेट फूल जाता है, वादी हो जाती है, अन्न पाचन न होने से ज्वर भी हो जाता है, फिर उत्तरोत्तर बीमारियां बढ़ सकती हैं वैसी दशामें फिर व्रतका पाला जाना अशक्य ही हो जाता है इसलिए दुःपक्व भोजन शरीर में साक्षात् विकार करता है पीछे धर्मसाधनमें वाधक बन जाता है अतएव उसे अतीचारों में लिया गया है। और इसीलिये पांचवां अतीचार-अभिषव-आहार भी दोष उत्पन्न करसे अतीचार कहा गया है। अभिषव नाम गरिष्ट पुष्टपदार्थों का है; जैसे हलुआ, रबड़ी, मलाई, घी, बादाम, रसायन आदि पौष्टिक पदार्थ एवं रसादिक पदार्थ सेवन करनेसे शरीरमें प्रबलता आती है, शारीरिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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