SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] ही वस्तु है, तब उसमें जीव और ज्ञान-सम्यक्त्व-चारित्र ऐसा भेद दिखलाना यह वस्तुस्वरूप नहीं रहा । एक अभिन्न वस्तुको दो कहना अथवा द्रव्यगुणका भेद प्रगट करना, यह सब कथन वस्तुस्वरूप नहीं है, इसलिये निश्चयनय इसका निषेध करता है। जीव ज्ञानवाला है। निश्चयनय कहता है, नहीं । जीव सम्यक्त्ववाला है। निश्चयनय कहता है, नहीं । जीवके अनंत गुण हैं । निश्चयनय कहता है , नहीं। जीव गुणपर्यायात्मक है। निश्चयनय कहता है, नहीं। इसप्रकार निषेधको विषय करने वाला ही निश्चयनय है। यहां शंका हो सकती है कि जब निषेध ही उसका विषय है तो अभावस्वरूप होनेसे वह अभावात्मक ठहरता है ? ऐसी आशंकाका उत्तर यह है कि-निषेध अभावस्वरूप नहीं है किंतु भावस्वरूप है; जैसे किसी मनुष्यको कहना कि यह पक्षी है क्या ? उत्तर होगा नहीं। हाथी है क्या ? उत्तर होगा नहीं। नारकी है क्या ? उत्तर होगा नहीं । देव है क्या ? उत्तर होगा नहीं । इत्यादि अनेक बातोंका निषेध करने पर क्या वह मनुष्य अभावात्मक ठहराया जा सकता है ? कभी नहीं, कारण जिन धर्मों का उसमें विधान किया जाता है, वे धर्म उसमें नहीं पाये जाते इसीलिये उसमें उनका निषेध किया जाता है। परंतु उन धर्मों का निषेध करनेसे मनुष्यत्व तो उससे नहीं चला जा सकता, मनुष्यरूप वस्तु तो वह है ही । यह एक स्थूल दृष्टान्त है; इसीप्रकार निश्चयनय अभेदरूप अखंडपिंडात्मक वस्तुको विषय करता है, अखंडपिंडस्वरूप वस्तु शब्दसे नहीं कही जा सकती; कारण जो-कुछ भी शब्दोंसे कहा जायेगा वह सब एक धर्मात्मक होगा । जैसे द्रव्य कहनेसे केवल द्रव्यत्व-गुणका बोध होता है, परंतु वस्तु केवल द्रव्यत्वगुणवाली ही तो नहीं है। इसीप्रकार वस्तु कहनेसे वस्तुत्व-गुणका, ज्ञानी कहनेसे ज्ञानगुणवालेका बोध होता है । एक शब्दसे समस्त वस्तुका बोध कभी नहीं हो सकता। शब्दमें वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy