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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] ३५१ ] चौथा अतीचार मौखर्य है, इसका यह अभिप्राय है कि व्यर्थका बकवाद करना । कुछ पुरुष ऐसा करते देखे जाते हैं कि वे रागद्वेषवश बहुत धृष्टताके साथ अधिक बोलते हैं, और विना विचारे कुछका कुछ ही बोलते चले जाते हैं । बिना प्रयोजन दूसरोंके झगड़ेमें घुस पड़ते हैं । वहांपर बड़बड़ाते हैं, इसप्रकार धृष्टतापूर्ण अधिक बोलनेको मौखर्य कहा गया है । पांचवां अतीचार असमीक्षिताधिकरण है। अर्थात् बिना प्रयोजन प्रयोग करते रहना । जैसे बैठे बैठे किसीका मनमें चितवन करना, किसी के लिये दुखदायी वचन बिना प्रयोजन बोलना, जिप्त क्रियासे अपने किसी प्रयोजनकी सिद्धि नहीं होती है उसे करना, जैसे रास्ता चलते चलते वनस्पति छेदना , पानीमें पत्थर आदि फेंकदेना, किसी पशुके लकड़ी आदि मारदेना, वे सब कार्य ऐसे हैं । जिनसे किसी इष्टकी सिद्धि नहीं होती, फिर भी इन्हें करनेसे व्यर्थ कर्मबंध बांधना है। इसलिये इन अतीचारोंसे अनर्थदंडव्रतियोंको दूर रहनेकी पूर्ण चेष्टा करनी चाहिये । सामायिकव्रतके अतीचार वचनमनःकायानां दुःप्रणिधानं त्वनादरश्चैव । स्मृत्यनुपस्थानयुताः पंचेति चतुर्थशीलस्य ॥ १६१॥ अन्वयार्थ-( वचनमनःकायानां ) वचन मन और शरीर इनका ( दुःप्रणिधानं ) दुरुपयोग करना ( तु अनादरः ) और सामायिकमें अनादर करना ( व स्मृत्यनुपस्थानयुताः) मामायिकके समय आदिको भूल जाना ( इति पंच चतुर्थशीलस्य ) इसप्रकार पांच मतीचार चतुर्थशोल - सामायिकके हैं। _ विशेषार्थ -सामायिक बिना मन-वचन-कायके एकीकरणके साध्य नहीं होता, सामायिक करते करते मनको वशमें नहीं रखना किंतु इधर उधर ध्येयले भिन्न पदार्थों में उसे चले जाने देना, यह मनका दुरुपयोग कहलाता है । मनके इधर उधर चले जानेसे ध्येयकी ओर आत्मा निश्चल नहीं हो सकता, वैसी अनस्थिरतामें वीतरागपरिणति नहीं हो पाती किंतु सरागता बनी रहती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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