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________________ ३५० ] [ पुरुषार्थ सिद्धय पाय बात में गाली निकाल बैठते हैं, प्रश्न करने पर कि ऐसी बुरी बात मुंहसे क्यों निकालते हो तो वे भट उत्तर दे देते हैं कि हम तो हंसी दिल्लगी में बोल रहे हैं, मानों हंसी दिल्लगी करना उनके लिये कोई क्रिया ही है । परंतु यह भूल है । जब वैसी क्रियासे कोई प्रयोजन नहीं सिद्ध होता तो व्यर्थको अशिष्ट पुरुषोंकी कोटि में क्यों शामिल होते हैं, भद्दी हंसी भद्दे शब्दों के आपसमें प्रयोग अच्छे पुरुष नहीं करते हैं, अशिष्टअसभ्य ही करते हैं । इतना ही नहीं किंतु उसप्रकारकी हंसी दिल्लगीकी क्रियासे रागद्वेषजनित कर्मबंध होता है, बिना फल दिये सरागीकी कोई क्रिया व्यर्थ नहीं जाती इसलिये व्यर्थ ही कर्मबंध बांधना बुद्धिमत्ता नहीं है । इसके सिवा इसप्रकार हास्य सहित भंड वचन बोलने से कभी कभी बड़े दुष्परिणाम निकल बैठते हैं, बड़े बड़े झगड़े भी खड़े हो जाते हैं, इस लिये हास्यमिश्रित भंड वचन बोलना अनर्थदंड व्रतका पहला अतीचार है, इस दूषण से व्रतीपुरुषको बचना चाहिये । दूसरा अतीचार यह है कि हास्यसहित भंडवचन भी कहते जाना, साथ ही शरीरसे - हाथ पैर मुख आदि से क्रिया भी करते जाना, जैसे बात करते करते दूसरे के शरीर पर हाथ पटकते जाना, हंसी करते करते उस पर लात मारतेजाना, घंसालगा देना, किसीपर आंख चलाना, मुह से उसे बिराना, शरीर का किसीमें धक्का देना, इत्यादि शारीरिक प्रयोग करते जाना आदि । तीसरा अतीचार भोगोंका आनर्थक्य है अर्थात् बिना प्रयोजन के वस्तुओंका संग्रह करलेना, विना प्रयोजन भोग्य उपभोग्य पदार्थों को उपयोगमें—व्यवहार में लाते जाना । यह अतीचार अनर्थदंडवतमें तो आता ही है परंतु भोगोपभोगपरिमाणत्रत में भी आ सकता है, कारण एक एक वूतके अनेक अतीचार हो सकते हैं इसलिये किसी अंशमें किसी व्रतमें समान अतीचार भी हो जाते हैं । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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