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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] [ ३४६ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm न जाकर मर्यादाकी रक्षा तो की, परंतु नौकर आदिको भेजनेसे भी उस व्रतकी पूर्णता नहीं रह सकी इसीलिये वह अतीचार है । इसीप्रकार स्वयं आज्ञा देकर मर्यादाके बाहरसे कोई वस्तु मंगा लेना यह भी अतीचार है । तीसरे मर्यादाके बाहर जाना तो नहीं परंतु खासकर शब्दादि संकेतसे अपना अभिप्राय यहीं बैठे बैठे प्रगट करदेना यह भी अतीचार है । चौथे अपने शरीर आदिको दिखाकर मर्यादाके वाहर स्थित एवं जानेवाले पुरुषोंको किसी प्रयोजनका स्मरण दिलाना यह भी अतीचार है। पांचवें मर्यादाके बाहर पत्थर कंकडी आदि फेंककर अपने अभिप्राय को प्रगट करना ये सब व्रतमें एकदेश दूषण लानेवाली क्रियाए हैं; इसलिये देशव्रत पालनेवाले पुरुषको इन्हें बचाना चाहिये । अनर्थदण्डव्र के अती चार कंदर्पः कौत्कच्यंभोगानर्थक्यमपि च मौखर्यं । असमीक्षिताधिकरणं तृतीयशीलस्य पंचेति ॥१६॥ अन्वयार्थ-( कंदर्प ) हास्यसहित भंड वचन बोलना ( कौत्कुच्यः ) कायसे कुचेष्टा कग्ना ( भोगानथस्यं अपि ) और प्रयोजनसे अधिक भागोंका उपार्जन ग्रहण करना (च मौखयं ) और लड़ाई झगड़ावाले वचन बोलना (असमीक्षिताधिकरणं ) विना प्रयोजन मन वचन कायके व्यापारको बढ़ाते जाना ( इति तृतीयशीलस्य पंच ) इस प्रकार तीसरे शीलके अनर्थदंडवतके ये पांच अतिचार हैं। ___ विशेषार्थ-विना प्रयोजन अधिक पापारंभ करनेसे अनर्थदंड होता है । परंतु पापारंभकी प्रवृत्ति नहीं बढ़ाकर केवल हास्यादिप्रयोगसे अपने कषायों को पुष्ट करना अतीचार है । कारण ऐसा करनेसे पूर्ण अनर्थदंड नहीं हो पाता जिससे कि वह अनाचारकी कोटिमें परिणत किया जाय किंतु एकदेश दूषण वह लाता ही है इसलिये उसे अतीचार समझा गया है। कुछ पुरुष विना प्रयोजन बात करते करते हसी करने के साथ साथ बुरे बुरे वीभत्स एवं श्रृंगारिक आदि शब्दोंका प्रयोग करते रहते हैं, प्रत्येक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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