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________________ २४८ } पुरुषार्थसिद्धय पाय पचास योजन भूमि मर्यादामें रक्खी हो तो भूलकर यह ध्यान करना कि पचास योजन रक्खी है या साठ योजन, कुछ ध्यानमें नहीं आता; ऐसा विचार होनेसे पचासकी जगह साठ योजन जमीन समझकर उसका उपयोग करना स्मृत्यंतराधान कहलाता है । यहांपर भी यह शंका की जा सकती है कि जैसे भूलसे अधिक क्षेत्रकी संभावना होनेसे वह अतीचार में लिया जाता है वैसे ही कमती क्षेत्रकी संभावना भी तो है, वहां स्मृत्यंतराधान अतीचार कैसे होगा ?' इसका यह उत्तर है कि-भूलमें मर्यादासे न्यून क्षेत्रका ध्यान रहना भी हानिकर है, भलेही कमती क्षेत्रसे आरंभ होने की संभावना नहीं है तथापि मर्यादाकी दृढ़ता नहीं रहती, मर्यादाकी दृढ़ता न रहने से, जैसे कमती क्षेत्रका स्मरण रह जाता है वैसे अधिक क्षेत्रका भी स्मरण होना सहज है, बहुधा मोह एवं प्रमादवश अधिक क्षेत्रकी ओर ही बुद्धि जाती है । इसलिये स्मृत्यंतराधान अतीचार में लिया गया है । मर्यादाका स्मरण न रहना शिथिलताका ही सूचक है । इन अतीचारोंसे मर्यादित क्षेत्रसे बाहर आरंभ होनेसे त्रस स्थावर की हिंसा होती है, इसलिये अतीचारों को बचाना चाहिये । देशव्रतके अतीचार प्रेष्यस्य संप्रयोजनमानयनं शब्दरूपविनिपातौ । क्षेपोपि पुद्गलानां द्वितीयशीलस्य पंचेति ॥८६॥ अन्वयार्थ-(प्रेष्यस्य )किसी सेवकको ( संप्रयोजन : मर्यादाके बाहर भेजना, (आनयनं ) बाहरसे कोई वस्तु मंगा लेना, ( शब्दरूपविनिपातो) शब्द कर लेना, रूप का दिखा देना (पुदगलानां क्षेप अपि ) और पुद्गलोंका मर्यादाके बाहर फेंकना (इति पंच ) इमप्रकार पांच ( द्वितीयशीलस्य ) दूसरे शीलवतके अर्थात् देशव्रतके अतीचार हैं। विशेषार्थ - देशव्रतमें जो समयविशेषके लिये मर्यादा रक्खी हो उसके बाहर स्वयं तो नहीं जाना परंतु दूसरा आदमी भेजदेना उसीके द्वारा काम करा लेना, यह अतीचार इसलिये है कि देशवती पुरुषने स्वयं बाहर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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