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( पुरुषार्थ सद्धय पाय
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लिये झूठ बोलदिया यह न्यासापहार वचन कहलाता है । किसी प्रकरण वा अंगविकार भृकुटी क्षेप आदिसे दूसरेके अभिप्रायको जानकर ईर्ष्याभावसे दूसरोंमें प्रगट कर देना साकारमंत्रभेद है ये पाचों सत्यव्रतके अतीचार हैं इनसे सत्यव्रतमें दूषण लगता है । ____ यहाँपर गुप्त बातको प्रगट करना दो जगह आया है परन्तु दोनोंका अभिप्राय जुदा जुदा है इसलिये दो अतीचार कहे गये हैं । यदि कोई शंका करे कि ये सभी अनाचार क्यों नहीं कहे जाते क्योंकि झूठ तो सवों में है, इसका उत्तर यह है कि अनाचार वहां होता है जहां सत्य बोलनेकी बिल्कुल मर्यादा नहीं रखी जाती । यहांपर झूठ तो बोला जाता है परंतु ऐसा झूठ है जो सत्यतामें छिप जाता है । किसी अंशमें थोड़ासा झूट बोलता है सर्वथा निर्द्वद्वरीतिसे झूठ बोलकर वह सत्यकी मर्यादाका ध्वंस करना नहीं चाहता । इसलिये पांचो ही भेद अतीचारोंमें गर्भित हैं ।
अचौर्यव्रतके अतीचार प्रतिरूपव्यवहारः स्तेननियोगस्तदाहृतादानं ।
राजविरोधातिक्रमहीनाधिकमानकरणे च ॥१८॥ अन्वयार्थ-( प्रतिरूपव्यवहारः ) सदृश वस्तुओंमें उलट फेरकर मिला देना ( स्तेननियोगः ) चोरीका उपाय बताना ( तदाहृतादानं ) चोरी का अपहरण किया हुआ द्रव्य ग्रहण करना ( राजविरोधातिक्रमहीनाधिकमानकरणे च ) राज विरोधका उल्लंघन करना, थोड़ा देना अधिक लेना, ये पांच अचौर्य व्रतके अतीचार हैं।
विशेषार्थ - कृत्रिम-बनावटी रत्नोंको असली रत्नोंमें मिलाकर उन्हें असलीकी कीमतसे बेचना, गेहू के आटेमें ज्वारीका आटा मिलाकर बेचना, दूधमें पानी मिलाकर बेचना, चांदीमें रांगा और सोने में मुलम्मा मिलाकर बेच देना यह सब प्रतिरूपव्यवहार कहलाता है । स्वयं तो चोरी का त्योग है परन्तु चोरोंको चोरी करनेका उपाय बतला देना, अथवा किसी दूसरेसे चोरको चोरीका मार्ग भीतरी खोज आदि कहलवाना, जो चोरी
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