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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] [ ३४३ करता है उसकी अनुमोदना करदेना, यह सब स्तेननियोग अथवा स्तेनप्रयोग कहलाता है । चोर जो चुराकर द्रव्य वर्तन आदि वस्तुएं लाता है उन्हें थोड़ा मूल्य देकर खरीद लेना. यह तदाहृतादान कहलाता है । जो बात राज्यसे विरुद्ध समझी जाती है, जिनके करनेसे राज्यकी आज्ञाका उल्लंघन होता है, नियम टूटता है उन बातोंको कर डालना, जेसे बाहरसे आते समय या बाहर ले जाते समय नये मालपर कुछ महसूल लगता है, उसे नहीं देना, किंतु छिपाकर ले जाना। ढाई वर्षसे ऊपर बच्चेका आधा टिकट लगता है और ग्यारहवर्षसे ऊपरके बच्चका पूरा रेलवे टिकट लगता है ऐसा नियम होनेपर ढाईवर्षके ऊपरवाले बच्चे को दो वर्षका बता देना या ग्यारह वर्षसे ऊपरवालेको दसवर्षका बता देना यह सब राजविरोधातिकम कहलाता है । बेचते समय ऐसे बांट तराजूसे-मापसे देना जिसमें लेनेवालेपर थोड़ी वस्तु जाय और लेतेसमय स्वयं खरीदते समय ऐसे बांट तराजूसे लेना जिससे अधिक वस्तु आ जाय, इसप्रकार ये पांच अचौर्यव्रतके अतीचार हैं । इन अतीचारों में स्वच्छंद रीतिसे चोरी नहीं होती है किंतु चोरीका अंश रूपसे प्रयोग होता है इसलिये कुछ दूषण होनेसे ये पांचों प्रयोग अतीचारोंमें गर्भित हैं । ब्रह्मचर्यव्रतके अतीचार स्मरतीत्राभिनिवेशोनंगक्रीड़ान्यपरिणयनकरणं । अपरिगृहीतेतरयोर्गमने चेत्वरिकयोः पंच ॥१८६॥ अन्वयार्थ- ( स्मरतीव्राभिनिवेशः अनंगक्रीड़ा अन्यपरिणयनकरणं ) कामभोगोंमें तीव्र लालसाका रखना, अंग भिन्न अंगोंमें रमण करना, दूसरोंका विवाह कराना ( अपरिगृहीतेत रयोः ) अपरिगृहीता जिसका किसीके साथ विवाह नहीं हुआ हो ऐसी वेश्या या कन्या, परिगृहीता दूसरेकी विवाहिता सधवा या विधवा स्त्री ऐसी जो ( इत्वरिकयोः ) व्यभिचारिणी है उनके यहां ( गमने ) गमन करना ये पांच ब्रह्मचर्यव्रतके अतीचार हैं। विशेषार्थ-ब्रह्मचर्यव्रत धारण करने पर भी काम की तीव्रता रखना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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