SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] [ ३४१ परिणामोंको मलिन करनेवाली हैं। इसलिये अहिंसाव्रत पालनेवाले-दयालुओंको इनसे अवश्य बचना चाहिये । सत्यव्रतके अतीचार मिथ्योपदेशदानं रहसोऽभ्याख्यानकूटलेखकृती। न्यासापहारवचनं साकारकमंत्रभेदश्च ॥१८४॥ अन्वयार्थ ( मिथ्योपदेशदानं ) झूठा उपदेश देना ( रहस्योऽभ्याख्यानकूटलेखकृती) गुप्त भेदको प्रगट कर देना, किसीको ठगनेकेलिये कपटरूपसे कुछका कुछ लिख कर प्रगट करना ( न्यासापहारवचनं ) किसीकी धरोहरके भूल जानेपर उसे अपहरण ( हड़प लेनेका) करनेका वचन कहना ( साकारकमंत्रभेदश्च ) किसीके गुप्त अभिप्रायको कायकी चेष्टा आदिसे जानकर प्रगट कर देनाये पांच अतीचार हैं । विशेषार्थ-जो धार्मिक क्रियायें आगमानुसार प्रसिद्ध हैं, उनके विषयमें झूठा उपदेश देना कि अमुक क्रिया ठीक नहीं है अमुकक्रिया इसरीतिसे होनी चाहिये, एवं धर्मका स्वरूप ऐसा नहीं ऐसा है, इसप्रकार असत्य कहना मिथ्योपदेश है । एकांतमें जो बात स्त्री पुरुष करते हैं उन्हें छिपकर सुनलेना और दूसरे समयमें उन्हें सबोंके सामने कहदेना यह रहसोभ्याख्यान है । किसी व्यापारादिमें प्रयोजन सिद्ध होता हुआ देखकर कपटरूप लेख प्रगट करदेना जैसे कि- अमुक व्यापारमें अमुकरूपसे लिखा पढ़ी हुई थी, अमुकरूपसे नहीं हुई थी इसप्रकार प्रगट करना अथवा भूठे तमस्सुक ( लेखपत्र ) बना लेना कूटलेखकृति कहलाती है । कोई कुछ द्रव्य रखजाय तो उसे धरोहर कहते हैं यदि किसीने किसीके पास १००) रक्खे हों परंतु एक वर्षदिन पीछे विस्मरण हो जानेसे वह ८०) रक्खे हुए समझकर ८०) ही मागने लगे तो साहूकार यह समझता हुआ भी कि इसने १००) रक्खे हैं परन्तु भूलकर ८०) मागता है, फिर भी उसे ८०) ही दे देय और कह देय कि हां तुम अपने ८०) जो रक्खे थे सो सब ले जाओ । ऐसी अवस्थामें उसने २०) रुपया अपहरण करनेके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy