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________________ ३४० ] [ पुरुषार्थसिद्धय पाय मनःप्रशंसा-मनसे मिथ्यादृष्टियोंके ज्ञान और चारित्रकी प्रशंसा करना, उनके गुणोंका हृदयमें आदर करना, उनकी क्रियाओंको मनमें भला मानना यह सब मनःप्रशंसा नामका पांचवा अतीचार है । इसप्रकार ये सम्यग्दर्शन के पांच अतीचार हैं, इनसे सम्यक्त्वमें मलिनता आती है, इसलिये उन्हें नहीं लगने देना चाहिये तभी सम्यक्त्व निदोष रह जाता है। अहिंसाव्रतके अतीचार छेदनताडनबंधा भारस्यारोपणं समधिकस्य । पानान्नयाश्च रोधः पंचाहिंसाव्रतस्येति ॥८३॥ अन्वयार्थ-( छेदनताडनबंधाः ) पशु पक्षी आदिकी नाक छेदना, कान छेदना, जीभ छेदना आदि, लकड़ी, वैत, अंकुश आदिसे उन्हें मारना, उन्हें इच्छित प्रदेशमें घूमने न देना एक स्थानमें बांध कर रखना, ( समधिकस्य भारस्य आरोपणं ) बहुत अधिक भारका लाद देना ( पानानयोश्च निरोधः) पानी और अन्नका नहीं देना अथवा समयपर नहीं देना, ( इति ) इसप्रकार ( अहिंसाप्रतस्य पंच ) अहिंसात्रतके पांच अतीचार हैं। ___ विशेषार्थ-जो घरमें पशुओंको रखते हैं उन्हें कभी कभी सताया करते हैं यह सताना ही अहिंसाव्रतमें अतीचार लगाना है । कारण कि प्रमादके योगसे प्राणोंका नाश करना ही हिंसा है, जो पशु सताया जाता है उसके प्राणोंको पीड़ा होती है, पीडाका होना ही भावप्राणोंका घात है। इसके सिवा नाक कान आदि शरीरके अवयवोंको छेदनेसे, लकड़ी आदि से मारनेसे,सामर्थ्यसे अधिक उनपर बोझा लाद देनेसे उनके शरीरके अंग भंग रूप बाह्य प्राणोंका घात भी हो जाता है इसलिये द्रव्यहिंसा भी हो जाती है तथा जो व्यकि उन्हें कष्ट पहुंचाता है वह बिना कषायभावरागद्वषके नहीं पहुंचाता इसलिये उसके प्रमादयोग है, अतः पशु पक्षियों को सताना अहिंसावतका अतीचार है, पशु भूखा है प्यासा है, उसकी फिकर नहीं करना अथवा उसे देरी करके खाने पीनेको देना, ये सब बातें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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