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________________ ३३८ ( पुरुषार्थसिद्धय पाय आचार्यों ने ग्रंथरूपमें संकलित किया है, इसलिए आगम सर्वथा निर्दोष यथार्थ है उसमें शंका करना अनुचित है। यदि परीक्षा करनेकी योग्यता है तो परीक्षा कर लेना चाहिये, परीक्षापूर्वक जो पदार्थको धारण करते हैं वे फिर कभी जैनधर्मसे विचलित नहीं हो सकते । कारण जैनधर्म जो युक्ति प्रमाणसे कभी खंडित नहीं हो सकता. वह जितना परीक्षाद्वारा मार्जित किया जायगा उतना ही महत्त्वास्पद बनता जायगा, परंतु परीक्षा करनेकी सामर्थ्य हो तभी परीक्षा की जा सकती है, थोड़ासा ज्ञान प्राप्त कर लेनेसे एवं शास्रोंका रहस्य नहीं समझनेसे परीक्षा नहीं की जा सकती, ऐसी अवस्थामें आगमकथन को आज्ञाप्रमाण ही स्वीकार कर आत्मकल्याण करना चाहिये । “सूक्ष्मं जिनोदितं तत्वं हेतुभिनव हन्यते । आज्ञासिद्धं च तद्ग्राह्य नान्यथावादिनो जिनाः ॥” अर्थात् जिनेंद्रदेवका कहा हुआ तत्त्वनिरूपण सूक्ष्म है, इसलिए स्थूलबुद्धिवालोंसे वह सर्वांशरूपसे जाना नहीं जाता। वह किन्हीं हेतुओंसे खंडित नहीं किया जा सकता, इसलिए आज्ञाप्रमाण ही धारण करना चाहिये । क्योंकि जिनेंद्रदेव अन्यथावादी नहीं हो सकते, अन्यथावादी-असत्यभाषी वही व्यक्ति हो सकता है जो अल्पज्ञ हो और रागी द्वेषी हो, जो दोनों बातोंसे दूर है अर्थात् अल्पज्ञ भी नहीं है और रागी द्वेषी भी नहीं है फिर उससे कभी अन्यथा प्रतिपादन हो ही नहीं सकता है । इसलिए श्रीजिनेंद्रदेवके वचनोंमें-ऋषिप्रणीत आगममें कभी संदेहवृत्ति नहीं लाना चाहिये । इसका यह अर्थ नहीं है कि आगमकथित पदार्थ में शंका ही उत्पन्न नहीं हो अथवा शंका करना ही बुरा है सो नहीं, शंका करना बुरा नहीं है, छद्मस्थोंको पदार्थों में शंकाका होना तो स्वाभाविक बात है परंतु अपनी बुद्धिकी मंदता समझकर पदार्थनिर्णयकी दृष्टिसे शंका करना समुचित मार्ग है, किंतु अपनी बुद्धिको ही सर्वोपरि समझकर आगमकथित पदार्थों को अयथार्थ समझना भारी अज्ञानता है । सम्यग्दृष्टि पुरुष जो देव गुरु शास्त्रका दृढ़श्रद्धानी है कभी इसप्रकारकी शंका नहीं करता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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