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[ पुरुषार्थसिद्धय पाय mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm ___ अन्वयार्थ -- ( अहं ) मैं ( मरणांते ) मग्णकालमें ( विधिना ) विधिपूर्वक ( मल्लेखनां । अवश्यं करिष्यामि ) सल्लेखनाको अवश्य धारण करूंगा ( इति भावनापरिणतः ) इसप्रकार की भावना रखनेवाला पुरुष ( अनागतमपि इदं शीलं पालयेत् ) अनुपस्थित रहते हुये भी इस शीलको पालन कर लेता है।
विशेषार्थ- सल्लेखना धारण करनेकी विधि यह है कि किसी कारणविशेष सेया सुतरां आयुका क्षय होता जानकर समस्त परिग्रह एवं कुटुम्बियोंसे ममत्वभाव छोड़ दे, शरीरसे वस्त्र भी दूर करा दे, अपने शरीर से भी ममत्वभाव छोड़ दे, आहारका त्याग सर्वथा कर दे, यदि सर्वथा न कर सके तो खाद्य पदार्थों को छोड़कर पेय पदार्थ, मांद रख लेय, उसे भी क्रमसे छोड़कर छाछ रख लेय उसे भी छोड़कर गरम जल रख लेय, पश्चात् उसे भी छोड़कर निराहारवृत्ति धारण कर ले । साथ ही किसीसे प्रेमभाव भी न करे, और न किसीसे शत्रु समझकर द्वोषभाव करे, किंतु सबोंको पास बुलाकर उनसे क्षमा मांगे और आप भी स्वयं उन्हें क्षमा प्रदान करे इसप्रकार चित्तको कषायसे रहित-शुद्ध बना लेय, अंतमें पंच नमस्कारका ध्यान करते करते सबप्रकारसे सावधानी रखते हुये शरीरको छोड़े यही सल्लेखनाको संक्षिप्त विधि है । इस विधिसे मैं मरणसमयमें अवश्य ही सल्लेखना धारण करूंगा, इसप्रकारकी निरन्तर भावना रखनेवाला पुरुष सल्लेखनाका समय नहीं प्राप्त होनेपर भी सल्लेखना व्रतका पालक समझा जाता है।
सल्लेखना आत्मघात क्यों नहीं है ? मरणेऽवश्यंभाविनि कषायसल्लेखनातनूकरणमात्रे । रागादिमंतरेण व्याप्रियमाणस्य नात्मघातोस्ति ॥१७॥
अन्यवार्थ- [ मरणे अवश्यं भाविनि ] मरणके नियमसे उत्पन्न होनेपर [ कषायसल्लेखनातनूकरणमात्रे ] कषाय सल्लेखनाके सूक्ष्म करने मात्रमें [ रागादिमंतरेण ] राग द्वषके बिना [व्याप्रियमाणस्य ] व्यापार करनेवाले सल्लेखना धारण करनेवाले पुरुषके [ आत्मपासः न अस्ति ] आत्मघात नहीं है।
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