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________________ ३.४ ] [ पुरुषार्थसिद्धय पाय फिर कितनेसमय क्या करे ? उक्तेन ततो विधिनोनीत्वा दिवसं द्वितीयरात्रिं च। अतिवाहयेत् प्रयत्नादधं च तृतीयदिवसस्य ॥१६६॥ अन्वयार्थ- [ ततः ] दो पहर तक अर्थात् सामायिकसे पहले पहले तक जिन पूजन करने के पश्चात् [ उक्त न विधिनो ] ऊपर कही हुई विधिके अनुसार [ दिवसं नीत्वा ] दिनको विताकर [ च द्वितीयरात्रि ] और द्वितीयरात्रिको विताकर [ प्रयत्नात् ] प्रयत्नपूर्वक सावधानीसे तृतीय दिवसस्य अर्ध च ] तीसरे दिनके पूर्वार्ध भागको भी[अतिवाहयेत्] वितावै । ___ विशेपार्थ -प्रोषघोपवास करनेवाला अष्टमी चतुर्दशीके दिन प्रातःकाल से सामायिकके पीछे से लेकर मध्यान्हके सामायिकसे पहले पहले पूजन करे, पूजन जल्दी समाप्त करले तो स्वाध्याय करे। पश्चात् मध्यान्हका सामायिक कर, पीछे स्वाध्याय अथवा धर्मचर्चाके सुनने सुनाने में समय वितावे सायंकाल होनेपर फिर सामायिक प्रतिक्रमण आदि संध्याविधि करे, पश्चात् देखभाल कर जीवोंकी बाधा बचाकर पवित्र आसनपर बैठकर रात्रिको शास्त्रपठन, जिनेंद्रगुणचिंतवन आदि द्वारा निद्रापर विजय करे, उसके बाद नवमी या पंद्रसके प्रातःकाल उठकर वही संध्याविधि-सामायिक प्रतिक्रमण बंदना आदि नित्य कर्तव्य करे, पश्चात् जिनेन्द्रपूजन एवं स्वाध्याय करके उस दिनका पूर्वाद्ध बितावै पश्चात् भोजनादि आरंभ करे । प्रोषधोपवासी पूर्ण अहिंसाव्रती है इति यः षोडशयामान् गमयति परिमक्तसकलसावद्यः । तस्य तदानीं नियतं पूर्णमहिंसाव्रतं भवति ॥१५७|| अन्वयार्थ- [इति ] इसप्रकार-ऊपर कही हुई विधि के अनुसार [ यः परिमुक्तसकलमावद्यः ] जो संपूर्ण पापारंभोंको छोड़कर प्रोषधोपवास करनेवाला गृहस्थ [ षोडश यामान गमयति ] सोलह पहर विताता है [ तस्य ] उस श्रावकके [ तदानीं [ उससमय [ पण अहि. साव्रतं नियतं भवति ] पूर्ण अहिंसावत निश्चय से होता है । विशेषार्थ-जैसी विधि ऊपर बताई गई है उसीके अनुसार जो समस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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