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________________ पुरुषार्थसिद्धयु पाय ] पंच पापोंको छोड़कर तीनों योगोंको वशमें रखकर ध्यान, पूजन, स्वाध्याय, धर्मचर्चा आदि धर्मक्रियाओंमें सोलह पहर किसीप्रकारके सांसारिक आरंभके किये बिना देता है वही पोषधोप्रवास करनेवाला पूर्ण अहिंसाव्रती कहलाता है। सोलहपहर इसपूकार हो जाते हैं कि-सप्तमीको एकाशन ( एकबार भोजन ) करके दोपहरके पश्चात् प्रोषधोपवास आरंभ किया जाता है, इसलिये सप्तमीके आधे दिनके दो पहर, सप्तमीकी पूरी रात्रिके चार पहर, अष्टमीके पूरे दिनके चार पहर, अष्टमीको पूरी रात्रि के चार पहर और नवमीके पहले आधेदिन (पूर्वार्ध ) के दोपहरतक प्रोषधोपवासकी विधि पूर्ण होती है इसलिये सोलह पहर समय धर्मध्यान में बिताया जाता है । सोलहपहरका ही उत्कृष्ट प्रोषधोपवास कहा जाता है । मध्यम बारह पहरका होता है तथा आठ पहरका जघन्य प्रोषधोपवास होता है । अष्टमीके पूरे दिनके चारपहर और अष्टमीकी रात्रिके चारपहर इसप्रकार आठपहर जघन्यप्रोषघोपवास पाला जाता है। पर्वके दिन जो प्रोषधोपवास करनेमें असमर्थ है उसे अनुपवास धारण करना चाहिये । जल ग्रहण करनेके सिवा बाकी सबपकारके भोजनका त्याग कर देनेका नाम ही अनुपवास है। अर्थात् पर्वके दिन केवल जल लेना बाकी कुछ नहीं लेना इसीका नाम अनुपवास है । जो अनपवास करने में भी असमर्थ है उसे विकाररहित सात्विक रूखा हलका भोजन कर लेना चाहिये । विकारी भोजन चार प्रकार है, गोरस-दूध, दही, घी, इच्छुरस-खांड, गुड़ आदि मिष्टपदार्थ, फलरस-दाख , आम्र आदिसे निकाला हुआ रस, और धान्यरस-तेल , मांड आदि पदार्थ, ये चार प्रकारके बिकारी कहलाते हैं, अर्थात् इनका भोजन इन्द्रिय और मन में स्वाद तृष्णा पैदा करता है इसलिये इनकी छोड़कर हलका रूखा भात वगैरहका भोजन कर लेना चाहिये । इस प्रकार उपवास, अनुपवास, एकाशन निर्विकार भोजन आदि शक्रिके अनुसार जितना ब्रतरूपसे ग्रहण किया जायगा उतना ही वह पुण्यबंध एवं आत्मविशुद्धिका कारण होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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