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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय | कोई बाधा कभी नहीं आ सकती, इत्यादिरूपसे धर्मस्वरूप वस्तुस्वरूप आदि धर्मध्यान करनेमें ही दिन बिताना चाहिये, पश्चात् सायंकाल होने पर संध्याकी विधि करना चाहिये उस समय सामायिक प्रतिक्रमण बंदना आदि कार्य करना चाहिये, किए हुए दुष्कर्मों की आलोचना करना चाहिये । पश्चात् रात्रिको कुशासन चटाई आदि पवित्र आसन पर बैठकर स्वाध्याय से निद्राको वश करते हुए बिताना चाहिये । भूमिको अच्छी तरह देखकर जीव हों तो उन्हें कोमल वस्तुसे हटाकर निर्जीवस्थानपर शीतलपट्टी चटाई कुशासन आदि तृणका बना हुआ आसन बिछाना चाहिये । उस रात्रिको सोने में बिताना ठीक नहीं है, कारण सोने से प्रमाद की वृद्धि होती है, स्वप्नादि विकारोंसे चित्तमें मलिनता आती है इसलिये चित्तको शुद्ध एवं निःप्रमाद परिणाम रखनेके लिये उस रात्रिको स्वाध्याय एवं धर्मचिंतना आदि सम्यग्ज्ञानवर्धक कार्यों में बिताकर निद्राको जीतना चाहिये । [ ३०३ पश्चात् कर्तव्यविधि प्रातः प्रोत्थाय ततः कृत्वा तात्कालिकं क्रियाकल्पं । निर्वर्तयेद्यथोक्तं जिनपूजां प्रासुकैर्द्रव्यैः || १५५॥ अन्वयार्थ – [ ततः ] रात्रि चितानेके पश्चात् [ प्रातः प्रोत्थाय ] प्रातःकाल उठकर के [ तात्कालिकं क्रियाकल्पं कृत्वा ] उस कालसंबंधी समस्त क्रियाकांडको करके [ यथोक्त] शास्त्रोक्त विधिके अनुसार [प्रसुकै द्रव्ये: ] प्रासुक द्रव्योंसे [ जिनपूजां निर्वर्तयेत् ] जिनेंद्र भगवान की पूजा करें । विशेषार्थ इसप्रकार रात्रि बिताकर प्रातःकाल सामायिक प्रतिक्रमण बंदना आदि उस समयकी संध्याविधि - कियाकांड करे, पीछे शास्त्रविहित मार्ग के अनुसार प्रासुक - द्रव्योंसे जिनपूजन करे । इस प्रकार उपयुक्त रीतिके अनुसार प्रोषधोपवास करनेवाला पर्वके दिन- अष्टमी और चतुर्दशी के दिन जिनेंद्र पूजन करे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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