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पुरुषाथसिद्धय पाय]
____ अन्वयार्थ-[प्रोषधदिनपूर्ववासरस्य अर्ध ] जो उपपास करनेका दिन है उस के पहले दिनके उत्तरार्धमें [ मुक्तसमस्तारम्भः ] समस्त आरम्भोंका त्याग करते हुये [ देहादी ममत्वे अपहाय ] अपने शरीर आदि वाह्यपदार्थों में ममत्वभाव छोड़कर [ उपवासं गृहणीयात् ] उपवास धारण करे।
विशेषार्थ-प्रोषधोपवास उसे कहते हैं कि जो पर्वके दिनोंमें धारण किया जाता है । प्रोषध नाम पर्वका है उसमें जो उपवास धारण किया जाय वह प्रोषधोपवास कहा जाता है । अथवा दूसरी तरहसे यह भी व्युत्पत्तिसिद्ध शब्दार्थ है कि चारों प्रकारके आहारका त्याग करनेका नाम उपवास है। प्रोषध नाम एक बार भोजन करनेका है और जो एक बार भोजन करके उपवास धारण करे वह प्रोषधोपवास कहलाता है, यहां पर यह अर्थ होता है कि जो प्रोषधपूर्वक उपवास है वह प्रोषधोपवास है । जब अष्टमी चतुर्दशी को उपवास धारण किया जाता है तो सप्तमी एवं त्रयोदशीको एकबार भोजन किया जाता है । इसलिये प्रोषधपूर्वक उपवास होनेसे प्रोषधोपवास कहा जाता है। अथवा प्रोषधोपवास धारण करके दूसरे दिन दोपहर पश्चात् आरम्भ किया जाता है वह प्रोषधोपवास कहलाता है । किसी प्रकारसे विवेचन क्यों न किया जाय फलितार्थ सबोंका एक ही है। उसी विधानक्रमको ग्रंथाकार बतलाते हैं कि उपवास करनेके प्रथम दिन अर्थात् अष्टमी और चतुर्दशीके पहले दिन-सप्तमी और त्रयोदशीको एकबार भोजन करके सबप्रकार सांसारिक आरम्भ छोड़ देना चाहिये, साथ ही शरीर, कुटुम्बीजन और भोगोपभोगयोग्य समस्त पदार्थों से ममत्व छोड़कर उसी समयसे उपवास धारण कर लेना चाहिये । उपवासका अर्थ यही है कि खाद्य, स्वाद्य, लेह्य, पेय इन चारों प्रकारके आहारका परित्याग कर देना, अर्थात् जल औषधि आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिये ।...
___ उपवासमें कर्तव्यविधि श्रित्वा विविक्तवसतिं समस्तसावद्ययोगमपनीयं ।
सर्वेद्रियार्थविरतः कायमनोवचनगुप्तिभिस्तिष्ठेत् ॥१५३॥
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