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________________ । पुरुषार्थसिद्धय पाय की निवृत्ति हो जाती है और सामायिकमें बैठे हुये गृहस्थके भी दोनों बातें हैं इसलिये सामायिक करते समय वह भी महाव्रती है परन्तु गृहस्थ के जो सामायिकदशामें महाव्रत है वह मुख्यतासे नहीं कहा जा सकता किंतु उपचारसे है, कारण कि अंतरंगमें महाव्रतको रोकनेवाली कषायका उसके उदय हो रहा है। मुनियोंके उसका अभाव है इसलिये एवंभूतनय से-प्तामायिक करता हुआ गृहस्थ महावततुल्य व्रतवाला होनेसे उपचरित महाव्रती है। ___ प्रोषधोपवास का वर्णन सामायिकसंस्कारं प्रतिदिनमारोपितं स्थिरीक । पक्षार्धयोर्द्व योरपि कर्तव्योवश्यमुपवामः ॥१५१।। अवयार्थ-[ प्रतिदिनं आरोपितं ] प्रतिदिन किये जाने वाले [ सामायिकसंस्कारं ] सामायिकरूप संस्कारका [ स्थिरीकर्तु] स्थिर रखने के लिये [ द्वयोः अपि पक्षार्धयोः ] दोनों ही पक्षों के आधे आधे समय में अर्थात प्रत्येक अष्टमी और प्रत्येक चतुदशी में [उपवासः अवश्य कर्तव्यः ] उपवास अवश्य करना चाहिये । ___ विशेषार्थ-प्रोषधोपवास एक मासमें चार वार किया जाता है, एक महीनेमें दो पक्ष होते हैं, प्रत्येक पक्षके अर्ध अर्ध भागमें अष्टमी चतुर्दशी तिथियां आती हैं, इसलिये एकमहीने में दो अष्टमी और दो चतुर्दशी आती हैं, इन चारों दिनोंमें प्रोषधोपवास अवश्य करना चाहिये । इसके करनेसे आरम्भजनित हिंसाका त्याग एवं परिणामोंमें निराकुलता तथा विशुद्धि विशेष उत्पन्न होती है, उससे प्रतिदिन किये जानेवाले सामायिकके संस्कार दृढ़ हो जाते हैं । इसलिये जो सामायिक शिक्षाव्रत धारण करनेवाले गृहस्थ हैं उन्हें उसकी दृढ़ताके लिये प्रोषधोपवास शिक्षावत भी अवश्य ग्रहण करना चाहिये । मुक्तसमस्तारंभः प्रोषधदिनपूर्ववासरस्यार्धे । उपवासं गृह्णीयान्ममत्वमपहाय देहादौ ॥ १५२॥ प्रोषधोपवास करनेकी विधि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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