SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] [ २९७ उसका यही भाव है । सामायिक में परिणामोंकी वीतरागभावोंकी वृत्तिविशुद्धवृत्ति यहांतक बढ़ जाती है कि सामायिक करनेवाला पुरुष हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पांचों पापोंको क्रमसे अथवा एकएकरूपसे जुदा जुदा त्याग नहीं करता है किंतु समस्त पापोंको सर्वथा एकरूपमें ही छोड़ देता है इसलिये उसके समस्त व्रत सुतरां पल जाते हैं । सामायिकमें बैठा हुआ पुरुष त्रसहिंसा और स्थावरहिंसा दोनोंका त्यागी है, कारण कि एक स्थानपर बैठकर ध्यान में निमग्न रहनेवाले सामायिकस्थिति पुरुषके द्वारा सर्वथा निष्कषाय परिणाम होनेसे एवं सब प्रकारका आरंभ छूट जानेसे किसीप्रकार किसी जीवको बाधा नहीं पहुंच सकती है । इसप्रकार सामायिक समस्त द्रव्योंमें समताभाव कराता है इसका फल तत्त्वज्ञान है, सामायिक करनेसे आत्मा विशुद्ध होता है, वही विशुद्धता ज्ञानावरणादि कर्मों के क्षयमें प्रधान हेतु है, ज्ञानावरणादि कमों के क्षय होनेपर बिना उपदेशादि सामग्री मिले भी आत्मामें तत्वज्ञानकी सुतरां जागृति हो जाती है । बढ़ते बढ़ते सामायिकद्वारा ही आत्मा केवलज्ञानकी प्राप्ति कर लेता है जिसमें कि अनन्त लोक एवं अलोकका ज्ञान समुद्रमें जलवुवुदके समान होता है। तत्त्वज्ञानकी प्राप्तिका मूलकारण सामायिक है । इसप्रकार सर्वोपरि उपादेय-सामायिक प्रत्येक आत्मकल्याण चाहनेवाले पुरुषको प्रतिदिन अवश्य करना चाहिये । कर्मों की निर्जराके लिये सामायिक ही एक सर्वप्रधान कार्य है । सामायिककी दूसरी व्युत्पत्ति यह है कि जो समयकी मर्यादा लिये हुए हो उसे सामायिक कहते हैं । सामायिक बिना परिणामोंको एकाग्र बनाये नहीं हो सकता । और एकाग्रता प्रतिसमय साध्य नहीं है इसलिये सामायिकका काल नियत है, उस नियतकालमें परिणामोंको एकाग्रवृत्ति बनाकर सामायिक करना चाहिये । उसकालका विभाग इसप्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy