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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] [२८१ ____विशेषार्थ- अपने हितकी चाहना रखनेवाले जो पुरुष सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इस त्रितयस्वरूप मोक्षमार्गका निरंतर सेवन करते हैं वे बहुत जल्दी ही मोक्षको प्राप्त करते हैं । रत्नत्रय पालन करने का फल मोक्षप्राप्ति है और वही संसारदुःखका विच्छेद है, संसारदुखोंका विच्छेद-नाश ही जीवोंका हित है। इसलिये मोक्षमार्गका सेवन करना ही प्रत्येक शरीरधारीका परम कर्तव्य है । इसप्रकार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान के पश्चात् पंचअणुव्रतरूप देशचारित्र का वर्णन किया गया । ___ सप्त शील पालनेकी आवश्यकता परिधय इव नगराणि व्रतानि किल पालयंति शीलानि। व्रतपालनाय तस्माच्छीलान्यपि पालनीयानि ।।१३६॥ अन्वयार्थ- [इव नगराणि परिधयः ] जिसप्रकार नगरोंकी रक्षा परकोट करते हैं उसीप्रकार [किल ] निश्चयसे [ व्रतानि शीलानि पालयंति ] व्रतोंकी रक्षा शील करते हैं [ तस्मात्] इमलिये [व्रतपालनाय ] अहिंसा आदि पंचमव्रतोंके पालनकरनेके लिये अर्थात् उनकी रक्षा करने के लिये [ शीलानि अपि पालनीयानि ] शील भी पालन करने चाहिये । विशेषार्थ-पहले समयमें जबकि अपने देशके ही राजा होते थे प्रत्येक नगरकी रक्षाके लिये परकोट बना दिये जाते थे, अर्थात् शहरके चारों ओर बहुत ऊंची मोटी दीवाल खड़ी कर दी जाती थी और चारों दिशाओंमें चार दरवाजे एवं छोटी खिड़कियां रख दी जाती थी जो कि रात्रिमें बंद कर दी जाती थीं, उनसे परराष्ट्र एवं चोर आदिसे प्रजाकी रक्षा सुगमता से की जाती थी । शास्त्रोंमें इसप्रकार की नगररचनाका वर्णन प्रायः सर्वत्र मिलता है। आजकल भी जैपुर, भरतपुर, कोटा, झालरापाटन आदि पुरातन रजवाड़ोंमें परकोट देखे जाते हैं । तो जिसप्रकार नगरोंकी रक्षा के लिये परकोटका होना आवश्यक है, बिना परकोटके परराष्ट्रसे नगरकी रक्षाका होना अशक्य है उसीप्रकार अहिंसादि अणुव्रतोंकी रक्षाके लिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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