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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] त्याग मन वचन काय तथा कृत कारित अनुमोदना इन नव भंगोंसे किया जाता है । [ २७५ ~~ रात्रिभोज को हिंसा क्यों लगती है ? हिंसां । रागाद्युदयपरत्वादनिवृत्तिर्नातिवर्तते रात्रिंदिवमाहरतः कथं हि हिंसा न संभवति ॥१३०॥ अन्वयार्थ – (अनिवृत्तिः ) भोजनका त्याग नहीं करना ( रागाद्युदयपरत्वात् ) रागादि के उदय के परतंत्र होनेसे अर्थात रागाधिक्य होनेसे ( हिंसां न अतिवर्तते ) हिंसाको नहीं बचा सकता है । (हि) त ( रात्रिंदिवं आहरतः ) रात्रिदिन खानेवालेको (हिंसा कथं न संभवति ) हिंसा क्यों नहीं लगेगी ? अर्थात् उसे अवश्य हिंसा लगती है । विशेपार्थ - हिंसा नाम आत्मपरिणामोंके विघातका है । आत्मपरिणामों का विघात रागद्वेषरूप कपायवृत्तिसे होता है इसलिये जिन प्रवृत्तियोंके करनेसे रागकी वृद्धि हो वे सब हिंसाजनक हैं जब कि विवेकपूर्वक किये गये दिवा भोजन में भी रागाधीन प्रवृत्ति होनेसे हिंसा होती हैं तब रात्रिभोजन में तो जीवरक्षणका विवेक बन ही नहीं सकता । वहां तो तीव्रराग के उदयसे ही प्रवृत्ति होना संभव है इसलिये तीव्र हिंसा अवश्यंभाविनी है और फिर जो रातदिनका विवेक न कर चाहे जब खानेवाला है उसकी वैसी प्रवृत्ति तो सिवा तीव्ररागके नहीं हो सकती । इसलिये तीव्ररागके उदय में तीव्र हिंसाका होना अनिवार्य है । शंका यद्येवं तर्हि दिवा कर्त्तव्यो भोजनस्य परिहारः । भोक्तव्यं तु निशायां नेत्थं नित्यं भवति हिंसा ॥ १३१ ॥ For Private & Personal Use Only अन्वयार्थ – [ यदि एवं ] यदि ऐसा है कि दिनरात भोजन करनेसे हिंसा होती है। [ तर्हि ] तो [ दिवा भोजनस्य परिहारः कर्त्तव्यः ] दिनमें भोजनका परिहार करना योग्य है [तु ] और [ निशायां भोक्तव्यं ] रात्रि में भोजन करना चाहिये [ इत्थं ] ऐसा करने से अर्थात् दिनमें भोजनका त्याग और रात्रिमें भोजन करनेसे [ हिंसा नित्यं न भवति ] हिंसा सदैव नहीं होती है । Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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