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[ पुरुषार्थ सिद्धय पाय mmmmmmmmarrrrrrrrrrr....rrrrrrrrrrrrrrammmmmm परंतु उस विरुद्धगमन से लाभ उठाकर अपने कुतर्कवलसे अपेक्षाकृतलाघवका स्वार्थपूर्ण कथन करते हुए जो अन्नादि समस्त पदार्थों का सेवन करते हैं, वे नितांत उछ खल हैं ऐसे पुरुष शास्त्रवचनोंके परिपालक कभी नहीं कहे जा सकते।
पाक्षिक श्रावकके लिये जो औषधि और साथ ही मुखशुद्धि के लिये तांबून इलायची आदिका कथन है उसके प्रमाण में ग्रंथातरका यह शनाक है"तांबूलमौषधं तोयं मुक्त्वाहारादिकां क्रियां । प्रत्याख्यान प्रदीयेत यावत्प्रा. तर्दिनं भवेत्" जबतक रात्रिके आरंभसे प्रातःकाल न हो जाय तबतक तांबूल औषधि जल इनको छोड़कर अन्य समस्त आहारका परित्याग कर देना चाहिये । इससे यह बात भी सिद्ध हो जाती है कि जो लोग यह कहते हुए सुने जाते हैं कि रात्रिभोजनका त्याग छठी प्रतिमामें होता है, उससे पहले रात्रिभोजनका त्याग नहीं है, वे स्वार्थसिद्धिवश मिथ्या वोलनेके लिये या तो अति साहस करते हैं अथवा वे विचारे प्रतिमाओं के स्वरूपसे एवं शास्त्राधार से नितांत अनभिज्ञ हैं। वास्तव में रात्रिभोजन का त्याग तो पहलीप्रतिमामें ही हो जाता है, पाक्षिकश्रावक भी रात्रिभोजन का त्यागी है केवल औषधि जल एवं मुख सुगन्धित करनेके लिए तांबूल सुपारी वह ले सकता है, इतर खाद्य लेह्य पेय स्वाद्य पदार्थो का रात्रिमें उसके भी त्याग बतलाया गया है, फिर दर्शनप्रतिमामें सभी वस्तुओंका त्याग हो जाता है । व्रतप्रतिमामें तो सम्पूर्ण ब्रतोंका निरतिचार पालन है ऐसी अवस्थामें पांचवीं प्रतिमा तक रात्रिभोजनका विधान बतलाना मूर्खता के सिवा और कुछ नहीं कहा जा सकता । रात्रिभोजनत्याग जो छठी प्रतिमाका नाम रक्खा गया है उसका प्रयोजन नव भंगोंके त्यागकी पूर्णतासे है अर्थात् वहांपर वह रात्रिभोजन करनेवालेकी अनुमोदना भी नहीं कर सकता, एवं रात्रिभोजन अच्छा है अथवा कर लेना चाहिये इस बात को वह मनमें भी नहीं ला सकता । क्योंकि छठी प्रतिमामें रात्रिभोजनका
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