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________________ २६४ ] [ पुरुषार्थसिद्धय पाय ु ममत्वपरिणाम कमती हैं वहां कमती हिंसा है, जहां ममत्वपरिणाम अधिक है वहां अधिक हिंसा है । इसोका स्पष्टीकरण हरित तृणांकुर चारिणि मंदा मृगशावके भवति मूर्छा । उदरनिकरोन्माथिनि मार्जारे सैव जायते तीव्रा ॥१२१॥ अन्वयार्थ - ( हरित तृणांकुर चारिणि ) हरे तृणोंके अंकुरोंको चरनेवाले ( मृगाशावके ) मृगके बच्चेमें ( मंदा मूर्छा भवति ) मंद मूर्छा होती है ( उंदर निकरोन्मथिनि ) मूषों ( चूहों ) के समूहों को नष्ट करनेवाली ( मार्जारे) बिल्लीमें ( सा एव तीव्रा जायते) वही मूर्छा तीव्र होती है । विशेषार्थ - जहांपर विशेष गृद्धता वा विशेष लालसा होती हैं वहीं पर विशेष मूर्छा मानी जाती है। जहां गृद्धता या लालसा कम है वहाँ मूर्छा भी कम मानी जाती है । एक हरिणका बच्चा शांतिसे जब इच्छा हुई तभी घासके अंकरे खा लेता है, जब इच्छा नहीं रही उन्हें छोड़कर चुपचाप बैठ जाता या खड़ा रहता है । उस धासके लेने में उसके ममत्व भाव मंद रहते हैं. कारण वह घासका ही ग्राहक है घास सदा इधर उधर रहती ही है । इसलिये उसके परिणामों में उसके ग्रहण करनेकी तीव्र लालसा नहीं होती तथा उसके लेनेमें उसकी आत्मामें संक्लेशभाव भी नहीं होता, परन्तु बिल्ली जब कभी भी चूहों को पकड़ती है बड़ी लालसाके साथ पकड़ती है, कपायकी तीव्रतासे उसके ऊपर बड़े जोरसे झपटती है तथा परोक्षमें भी जब तक चूहा नहीं दीखे तबतक भी उसीकी तीव्र वासना लिये हुये रहती है इसलिये उस कार्य में उसकी तीव्र तो गृद्धता है और संक्लेशपरिणामोंका भी आधिक्य है । क्योंकि बिल्ली के परिणामोंमें तीव्र आकुलता है । इसका कारण भी यह है कि चूहा जंगम जीव है, वह भी अपने प्राणोंकी रक्षा करना चाहता है इसलिये वह बिल्ली के देखने पर इधर उधर छिपनेकी चेष्टाके साथ महान् भयभीत हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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