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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय } [ २४३ सावद्य वचन बातें प्रकाशमें लाकर उसे नीचा दिखाना हो, ऐसे ही वचन हास्यमिश्रित समझे जाते हैं, इन वचनोंसे भी परात्माका पीडन होनेसे वे असत्य कहे गये हैं । जो लोग दूसरोंको धिक्कार देनेवाले उद्धततापूर्ण क्रोधके आवेगमें आकर अतिभयंकर कठोर वचन बोलते हैं उनके वे वचन भी दुखोत्पादक होनेसे असत्य हैं । जो कुछका कुछ असभ्य एवं असंबद्ध वचन बोलता है वह भी झूठ बोलता है । अन्यथा होनेसे एवं भ्रमोत्पादक होनेसे झूठ है। जो वचन अर्थशून्य है वह प्रलपित कहलाता है ऐसा वचन भी झूठ है, कारण जिसका कोई अर्थ न हो वह भी हरप्रकारसे भ्रमोत्पादक है । और भी जो कुछ सिद्धांतकथनसे विपरीत बोला जाता है, वह सब गर्हित वचन है, निदनीय है अतएव त्याज्य है। छेदनभेदनमारणकर्षणवाणिज्यचौर्यवचनादि । तत्सावा यस्मात्प्राणिवधाद्याःप्रवर्तते॥७॥ अन्वयार्थ [ छेदनभेदनमारणकर्षणवाणिज्यचौर्यवचनादि ] छेदना, भेदना, मारण, खेती, वाणिज्य और चोरी आदिका जो वचन है [ तत् सावद्य] वह दोष सहित वचन है [ यस्मात ] क्योंकि [ प्राणिवधाद्याः ] इन वचनोंसे प्राणियोंका बध आदि हिंसाके कार्य [ प्रवर्तते ] होते हैं। ___ विशेषार्थ-इसके कान पूंछ नाक जीभ आदि छेद डालो, इसकी अंगुली गर्दन आदि काट डालो, इसे मारो, खेती करो अर्थात् इस जमीनको खोद डालो आदि, पशुओंका लेन देन आदि वाणिज्य करो, दूसरेका धन किसी मार्गसे उठा लाओ, उसके घरमें छतपरसे घुस जाओ आदि वचनोंका प्रयोग करना सब झूठ है कारण इन वचनोंसे सिवा प्राणिपीडनके और कुछ हितकारिता नहीं है। अरतिकरं भीतिकरं खेदकरं वैरशोककलहकरं । यदपरमपि तापकरं परस्य तत्सर्वमप्रियं ज्ञेयं ॥१८॥ अन्वयार्थ -( अरतिकरं ) चित्तमें आकुलता पैदा करनेवाला एवं धैर्यको नष्ट करनेवाला अप्रिय वचन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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