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[ पुरुषार्थसिद्धय पाय
सब कथन झूठमें शामिल नहीं किया जा सकता क्योंकि गुरु अथवा मुनिमहाराजके वचनोंमें प्रमादयोग नहीं है। सकषाय परिणामोंसे उन्होंने वे वचन नहीं कहे हैं किन्तु उन जीवोंको सन्मार्गपर लानेके लिये ही कहे हैं । इसलिये जिस कठोर वचनमें प्रमादयोग हो वह सत्यवचन भी असत्य में शामिल है और जहां प्रमादयोग नहीं है वह कठोर वचन भी असत्य नहीं कहा जा सकता। अब निंदनीय अवद्यसहित और कठोरवचन कौन कहलाते हैं इसीबातका नीचे लिखे श्लोकों द्वारा दिग्दर्शन कराया जाता है।
गहित वचन पैशून्यहासगर्भ कर्कशमसमञ्जसं प्रलपितं च ।
अन्यदपि यदुत्सूत्रं तत्सर्वं गर्हितं गदितं ।।६।। अन्वयार्थ--[पेशून्यहासगर्भ ] पिशुनपना अर्थात् चुगलखोरी दूमरोंकी झूठी सांची नुराई करना हंसी सहित वचन बोलना [ कर्कशं] क्रोधपूर्ण दुसरेके तिरस्कार करनेवाले वचन बोलना [ असमंजसं ] कछका कुछ असंबद्ध बोलना [प्रलपितं च ] जिन वचनोंका कोई उपयुक्त अर्थ नहीं है ऐसे निरर्थक एवं नि:स्सार वचनोंका बोलना [ अन्यत् अपि यत् उत्सूत्रं ] और भी जो वचन भगवत् आज्ञासे विरुद्ध- जिनागमकथित सूत्रोंके आज्ञायोंसे विरुद्ध है [ तत्सर्वं ] बह सब वचन [ गर्हितं ] निंद्य [ गदितं ] कहा गया है। _ विशेषार्थ-जो लोग दूसरोंकी झंठी सांची बुराई किया करते हैं वे सब झूठ बोलनेवाले हैं, कारण झूठी बुराईसे तो दूसरेके परिणामोंमें दुःख पहुंचानेसे उसकी भावहिंसा होती है । परन्तु सांची बुराई करनेसे भी जिसकी बुराई की जाती है उसके परिणाम दुःखी होते हैं, उससे उसके अशुभास्रव होता है, उससे पुनः दुःख होता है। इसीप्रकार बुराई करनेवालेके अशुभास्रव होता है । इसलिये ऐसे बुराईयुक्त वचन असत्यमें शामिल हैं। कभी किसी व्यक्रिकी बुराई नहीं करना चाहिये, जहांपर किसी दोषी पुरुषसे दोष छुड़ानेके परिणाम होते हैं वहां उसकी बुराई करनेके भाव भी नहीं होते किंतु उसे ही एकान्तमें समझाया जाता है । हास्यसहित वचन वहीं बोला जाता है जहांपर किसी पुरुषको चिड़ाना हो या उसकी झूठी
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