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________________ २३६ ] [ पुरुषार्थसिद्धय पाय ऐसे लोग पहले बनारस आदि वैष्णवोंके तीर्थों में अधिक पाये जाते थे। जहां कोई तीर्थ भक्त वहां पहुंचा, झट उन्होंने अपने चुगलमें उसे फंसाया । वे उसे “काश्यां मरणान्मुक्तिः" काशीमें मरनेसे मुक्ति होती है, यह सिद्धांत समझाकर करौंत (आरे)के नीचे उसका सिररख देते थे, सब धन उसकालेकर उसे खुशी खुशी परलोक पहुंचा देते थे। ऐसे परलोक पहुंचानेवाले अनेक स्थान आजकल बंद करा दिये गये हैं । अब ऐसी पृथा खुलेरूपमें कहीं देखने में नहीं पाई जाती । ऐसे धूर्तलोग केवल धनके लोभसे मनष्योंके मारनेमें कुछ भी संकोच नहीं करते थे और इन लोगोंके विश्वासमें आया हुआ भक्न मनुष्य भी खुशी से प्राण देने में जीवनका महत्व समझता था । समझदार पुरुषोंको ऐसे हिंसामय मायाचार पूर्ण अधर्मसे बचना चाहिये । भूखेको भी मांसदान देना पाप है दृष्ट्वा परं पुरस्तादशनाय क्षामकुक्षिमायांतं । निजमांसदानरभसादालभनीयोन चात्मापि॥८६॥ अन्वयार्थ-( च ) और ( अशनाय ) भोजन के लिये ( पुरस्तात् ) सामने ( आयांतं ) आते हुए ( परं ) किसी (क्षामकुक्षिं ) भूखे जीवको ( दृष्ट वा ) देखकर (निजमांसदानरभसात् ) अपना मांस देकर ( आत्मा अपि ) अपनी भी ( न आलभनीयः ) हिंसा नहीं करनी चाहिए। विशेषार्थ -कुछ लोगोंका ऐसा कहना है कि जो मांसभक्षी जीव हैं उसको भूखा देखकर अपना मांसतक दे देना चाहिये इसीके निषेधार्थ आचार्य महाराज कहते हैं कि यदि कोई भूखा सामने आकर अपने खानेके लिये मांसकी याचना करे तो उसे अपने शरीरका मांस देकर अपने आत्मा को नहीं ठगना चाहिये कारण दयाका लक्षण वही है जिसमें निज परके परिणामोंकी रक्षा हो । वह भूखा भी दयापात्र नहीं कहा जा सकता जो अनंतजीवोंका पिंडस्वरूप मांस जैसी घृणितवस्तु खानेके लिए तैयार है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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