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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय] [ २३५ ध्यानमें बैठे हुए गुरुका शिर काट देना । समाधिमें बैठा हुआ यदि मार दिया जायगा तो वह इस शुभ कार्यसे अवश्य ही सुगतिको चला जायगा, ऐसी बुद्धि रखकर गुरुके लिये कृतज्ञता प्रगट करनेवाला एवं उसकी भलाई चाहनेवाला शिष्य यदि गुरुका प्राणहरण करता है तो उसकी बराबर कोई अज्ञानी नहीं हैं । ध्यानके द्वारा शुभ परिणामोंसे पुण्यबंध करनेवाले गुरुको प्राणदंड देकर उसके परिणामोंको कलुषित बनाकर बिना कारण उसे पापबंध कराता है और स्वयं भी गुरुकी गुरुतम ( बड़ीभारी) हिंसा करके पापबंध करता है। सच तो यह है कि बिना विवेकके मनुष्य उसीप्रकार उपकारके बदले अपकार कर डालता है जिसप्रकार कि सोते हुये राजाकी रक्षामें नियुक्त मूर्ख पुरुष राजाकी नाकपर बैठी हुई मक्खीको उड़ता न देखकर राजाकी भलाईके लिये तलवारसे उसकी नाक काट डालता है। इसीप्रकार अनेक जीव संसारमें अपनी अज्ञानतासे पुण्यके बदले पाप कमा रहे हैं, कुमार्गको सुमार्ग समझ रहे हैं। खारपटिकोंका मत धनलवपिपासितानां विनयविश्वासनाय दर्शयतां । झटितिघटचटकमोक्षं श्रद्धयं नैव खारपटिकानां ॥८॥ अन्वयार्थ— [धनलवपिपासितानां] धनके प्यासे [विनयविश्वासनाय] शिष्योंको विश्वास दिलानेके लिए [ झटिति घटचटकमोक्षं ] शीघ्र ही घटके फूटनेसे उड़ने वाली चिड़ियाके समान मोक्षको [दर्शयतां] दिखानेवाले [खारपटिकानां ] धूर्त - ढोंगी-गेरुआ आदि वस्त्र पहनकर झूठाभेष धारण करनेवाले पुरुषोंका मत [नैव श्रद्धयं ] नहीं मानना चाहिये । ___ विशेषार्थ-जिस प्रकार घड़े में बैठी हुई चिड़िया घड़ेके फोड़ देनेसे तत्काल उड़ जाती है उसीप्रकार जीवको मार देनेसे तुरंत ही उसकी मोक्ष हो जाती है । इसप्रकार झूठी झूठी बातें कहकर अपने अनुयायियोंको झूठा विश्वास दिलानेवाले बनावटी भेष धारणकर संसार को ठगते फिरते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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