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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ) [२२६ भी पुरुषोंको रागभाव स्वस्त्रीके सेवनमें ही होता है, माताके प्रति उसप्रकारके कितीके परिणाम भी नहीं होते इसलिये ऐसी खोटी बुद्धि नहीं रखना चाहिये कि अनेक जीवोंकी अपेक्षा एक बड़े प्राणीका वध कर लिया जाय । ऐसा करने में एक बात यह भी है कि जिस एक पशुका वध किया जाता है उसे तो महान् पीड़ा होती ही है परन्तु उसके वधके साथ उसके शरीरमें रहनेवाले और भी असंख्य त्रस एवं अनंत एकद्रिय जीव विध्वंसित हो जाते हैं और उस कलेवरके भक्षणमें और भी उसमें उत्पन्न होनेवाले जीव भक्षण में आ जाते हैं इसलिये यह सिद्धांत सर्वथा मिथ्या है कि एक प्राणीका वध किया जाय। एकके बधमें अनेकोंकी रक्षाका विचार भी मिथ्या है रक्षा भवति बहूनामेकस्यैवास्य जीवहरणेन । इति मत्त्वा कर्तव्यं न हिंसनं हिंस्रसत्त्वानां॥८३॥ अन्वयार्थ – [ अस्य ] इस [ एकस्य एव ] एक ही हिंस्रक जीवके [ जीवहरणेन ] प्राण नष्ट करनेसे [ बहूनां ] बहुत जीवोंकी [ रक्षा भवति ] रक्षा होती है । [ इति ] इसप्रकार [ मत्त्वा ] मानकर के [ हिंस्रसत्त्वानां ] हिंसा करनेवाले प्राणियोंकी [हिंसनं न कर्तव्यं ] हिंसा नहीं करना चाहिये । विशेपार्थ--मोटी समझ एवं कुबुद्धि रखनेवाले कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं कि संसारमें जितने हिंसा करनेवाले जीव हैं उन्हें मार देना चाहिये जिससे जगत्में हिंसा न हो । जैसे बिल्ली चूहों की हिंसा करती है तो एक बिल्लीके मार देनेसे बहुतसे चूहोंकी रक्षा हो जायेगी । सिंह, हिरण आदि पशुओंकी हिंसा करता है इसलिये एक सिंहके मारडालनेसे अनेक जंगलके पशुओंकी रक्षा हो जायेगी इत्यादि अनेक दृष्टांत हैं । इस प्रकार कहनेवालोंको सोचना चाहिये कि तुम जीवों की रक्षा करना ही यदि लक्ष्य रखते हो तो फिर स्वयं हिंसक क्यों बनते हों ? संसारमें एक दूसरेके भक्षक अनेक हैं, तुम किस किसको मारते फिरोगे? बिल्ली, कुत्ता, चिड़िया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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