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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] [ १८५ तो फिर झूठ, चोरी, कुशील तृष्णा आदि भिन्न भिन्न पापोंके नाम क्यों कहे गए हैं ?' इसका उत्तर यह है कि वास्तवमें सब हिंसाके रूप होनेपर भी केवल बालकोंके बोध करानेके लिये विजातीय ( भिन्न भिन्न ) पापोंका भिन्न भिन्न नाम कहा गया है। अल्पज्ञानी एवं अज्ञानी जीव खंड खंड रूपसे एक एक विषयको समझकर एक एक अंशको छोड़ते जांय इसीलिये खंड खंड अंशांशोंका पांच पापोंके नामसे जुदा जुदा रूप दिया गया है । सबोंमें आत्माके निजस्वरूपका घात होनारूप लक्षण घटित होनेसे सब हिंसामें गर्भित हो जाते हैं । जिसप्रकार खंड खंड रूप पापोंको झूठ चोरी कुशील तृष्णा आदि नामसे कहा गया है, उसीप्रकार सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, निष्परिग्रहभावोंको भी भिन्न भिन्न ब्रतके नामोंसे कहा गया है अर्थात् विजातीय एवं खंड खंडरूप पापोंका त्याग खंड खंडरूप ब्रतके नामसे जुदा जुदा कहा गया है । वास्तवमें वे सब एक अहिंसाके ही स्वरूपमें गर्भित हैं। हिंसाका लक्षण यत्खलु कषाययोगात् प्राणानां द्रव्यभावरूपाणा। व्यपरोपणस्य करणं सुनिश्चिता भवति सा हिंसा॥४३॥ अन्वयार्थ – (खलु ) निश्चय करके ( कषाययोगात् ) कपायसहित योगोंसे ( द्रव्यभावरूपाणां ) द्रव्य और भावरूप (प्राणानां ) प्रागोंका ( यत् त्य परोपणस्यकरणं ) जो नष्ट करना है ( सा ) वह ( सुनिश्चिता ) निश्चितरूपसे ( हिंसा) हिंसा ( भवति ) होती है । ____ विशेषार्थ-हिंसाका यही मूल लक्षण है कि सकषायमनवचनकायसे अपने तथा परके अथवा दोनोंके भावप्राण और द्रव्यप्राणोंका घात होना। इस लक्षणकी सूक्ष्मतापर दृष्टि डालनेसे पता चलता है कि केवल किसी जीवका मारा जाना अथवा उसके अंगोंका भंग हो जाना मात्र ही हिंसा नहीं है; किंतु भावहिंसापूर्वक की गई द्रव्यहिंसा हिंसामें गर्भित है। दूसरे शब्दोंमें इस बातको यों कह सकते हैं कि केवल द्रव्यहिंसाको हिंसा नहीं कहा जाता, वहां हिंसाका लक्षण ही घटित नहीं होता । यदि बिना कषायJain Education Intextional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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