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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] है । इसलिये यहांपर सम्यग्ज्ञान के बिना चारित्रको अज्ञानपूर्वक चारित्र कहा गया है । अज्ञानपूर्वक चारित्र कुचारित्र अथवा मिथ्याचारित्रको कहते हैं । इसलिये चारित्र तभी सम्यक्चारित्र कहलाने योग्य है जबकि वह सम्यग्ज्ञान (सम्यग्दर्शन - सहित ज्ञान ) पूर्वक होता है । बिना सम्यग्ज्ञानके चारित्र में समीचीनता अथवा सम्यकूपना नहीं आता है । यह बात पहले कही जा चुकी है कि अविवेकपूर्वक चारित्र पापबंधका कारण है । संसार में ऐसे अनेक तपस्वी देखनेमें आते हैं जो कुतप तपते हैं, शरीरको कष्ट देते हैं, वासनाओंको रोकते हैं, परन्तु बिना सद्विवेकके उनका वह सब कर्म उलटा पापबंधका कारण है । सम्यग्ज्ञान पूर्वक स्वल्पक्रिया अथवा थोड़ा व्रत भी लाभदायक है। बिना सद्विवेक या सम्यग्ज्ञानके बहुतसा तपका आचरण भी दुःखकारण है । जो पुरुष नग्न होकर जंगलमें रहकर भी आरंभी और परिग्रही हैं, जो व्रती होकर भी अमर्यादी एवं सांसारिक वासनाओंसे मुक्त नहीं हैं, जो धर्मात्मा वनते हुए भी हिंस्रक हैं, जो देवोपासक बनते हुए भी कुदेवाराधक हैं, जो त्यागी एवं संयमी बनकर भी अभयसेवी और रात्रि भोजी हैं, वे सब सद्विवेकशून्य मिथ्याचरणी हैं । इसीलिये आचार्यों का यह उपदेश है कि "हतं ज्ञानं क्रियाहीनं हता चाज्ञानिनां क्रिया” अर्थात् जिन्होंने सम्यग्ज्ञानको प्राप्त करके भी चारित्र धारण नहीं किया, उनका वह ज्ञान व्यर्थ है; क्योंकि सद्विवेकका फल आत्माको समुज्ज्वल बनाना है, सो वे नहीं बन सके । तथा जो सम्यज्ञानी नहीं हैं यदि चारित्र धारण करते हैं, तो उनका चारित्र नष्ट है, किसी कामका नहीं है। अज्ञानसे कीगई क्रिया कभी उत्तम फलको नहीं देसकती । जिन्होंने सम्यग्ज्ञानको प्राप्तकर, यदि चारित्र नहीं धारण किया तो उन्होंने इतनी ही हानि उठाई कि वे आत्माको विशेष महत्वशाली नहीं बना सके । परन्तु जिन्होंने बिना सम्यज्ञानकी प्राप्तिके चारित्र धारण किया उन्होंने तो लाभ नहीं किया इतना ही नहीं किंतु उलटा पापबंध किया । यदि वे Jain Education International [ १७६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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