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विषय मंगलाचरण ग्रन्थ रचना करने में आचार्य का अभिप्राय संसारी जोवों की समझ व्यवहार नय की उपयोगिता उपदेश देने का पात्र पुरुष (आत्मा) का स्वरूप जीव स्वयं कर्ता भोक्ता है पुरुषार्थ सिद्धि का उपाय जीव और कर्म में निमित्त नैमित्तिक सम्बंध अज्ञानी जीवों की समझ पुरुषार्थ सिद्धि का उपाय मुनियों की अलौकिक वृत्ति एक देश व्रत किसे देना ठीक है दंडनीय उपदेश और उपदेश का क्रम सम्यग्दर्शन का पहले ग्रहण क्यों सम्यग्दर्शन का स्वरूप सम्यग्दर्शन के आठ अंगों का स्वरूप सम्यज्ञान का विवेचन सम्यक चारित्र का स्वरूप हिंसाका व्यापक स्वरूप अष्ट मूल गुण धर्मोपदेश पाने के पात्र असत्य का लक्षण चोरी का लक्षण मैथुन का लक्षण परिग्रह का लक्षण सम्यग्दर्शन के घातक चोर रात्रिभोजन का त्याग सप्त शील पालने की आवश्यकता सामायिक का स्वरूप प्रोषधोपवास का वर्णन
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