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पुरुषार्थसिद्धथुपाय आगम मार्ग प्रकाशक
'आगम मार्ग प्रकाशक" ग्रन्थ हमने बनाया है उसमें सभी सैद्धान्तिक विषय सप्रमाण लिखे गये हैं, जिनसे प्रचलित सभी मतभेद दूर हो जाते हैं उसी 'आगम मार्ग प्रकाशक' शास्त्रके अन्तमें २० पृष्ठोंमें हमने यह सप्रमाण एवं सुतर्क पूर्ण सिद्ध किया है कि पंचाध्यायी महाशास्त्र आचार्य अमृतचन्द्रसूरिकी ही रचना है । प्रकरणवश हमने इतना लिखना उचित समझा है।
पुरुषार्थसिद्धयुपाय लघु रचना होनेपर भी श्रावकोंके लिये परम कल्याणकारी है। हिंसा और अहिंसाका स्वरूप जितना महत्वपूर्ण इस शास्त्रमें है वह दर्पणके समान स्पष्ट रूपसे प्रकाश डालता है श्रावकोंकी चर्या और उनसे मूलगुण और व्रतोंका क्रमपूर्ण विवेचन विस्तारसे इस शास्त्रमें कहा गया है मुनियोंकी चर्चाका विवेचन भी उत्तम रूपसे कहा गया है। और भी अनेक विषय इस शास्त्रमें ऐसे हैं जिन्हें पढ़नेसे स्वाध्यायशील श्रावक संसार विरक्ति बन सकता है और मोक्षमार्गमें लग सकता है। जैन सिद्धान्त समझनेको पहली कुञ्जी तीन शास्त्र
पुरुषार्थसिद्धयुपायके अतिरिक्त-रत्नकरण्डश्रावकाचार, द्रव्यसंग्रह और तत्त्वार्थसूत्र ये तीन शास्त्र ऐसे हैं जो लघु शास्त्र कहे जाते हैं पर इनके भीतर सागरको गागरमें भरनेके समान समस्त जैन सिद्धान्त भर दिया गया है । ये तीनों शास्त्र उन महा दिग्गज सिद्धान्त रहस्यके पारगामी आचार्यके बनाये हुए हैं जिन्होंने महान्महान् शास्त्रोंकी रचना की है । भले ही तीनों शास्त्र प्रवेशिका परीक्षामें रक्खे गये हैं जिन्हें छोटे छात्र पढ़ते
ठस्थ कर लें यह मल उद्देश्य है किन्त हम अनुभव करते हैं कि इन तीनों शास्त्रोंमें वह सिद्धांत रहस्य भरा हुआ है जो शास्त्री विद्वानोंके मनन करने योग्य है । इन शास्त्रोंको अच्छी तरहसे समझनेवाले छात्र या स्वाध्यायशील शास्त्रोंके ज्ञाता विद्वान् माने जाते हैं।
ये शास्त्र सिद्धांत रहस्य समझनेके लिये पहलो कुञ्जी है । इन पर रची हुई महान् गंभीर संस्कृत टीकायें क्लिष्ट हैं । उन टोकारूप महान् शास्त्रोंको समझनेके लिए उक्त तीन शास्त्र मूल बोज हैं। इन तीनोंके आशयको समझकर उन्हें कण्ठस्थ करना आवश्यक है।
इन तीनोंमें तत्त्वार्थसूत्र ऐसा महाशास्त्र है जिसपर सर्वार्थसिद्ध, तत्त्वार्थराजवातिक श्लोकवार्तिक आदि महान् शास्त्र रचे गये हैं। तीनों लोकोंमें अलोक सहित ऐसा कोई तत्त्व या पदार्थ नहीं बचा है जो इस तत्त्वार्थसूत्रमें नहीं कहा गया हो । समस्त त्रिलोक तत्व प्रतिपालक यही मूल सूत्र है । जो सर्वज्ञवाणीको दीपकके समान प्रकाश करता है अलमति विस्तरेण
ज्ञानतोऽज्ञानतो वापि शास्त्रोक्तं न कृतं मया । तत्सर्वं पूर्णमेवास्तु त्वत्प्रसादाज्जिनेश्वरः ।।
सर्वकल्याणमस्तु
--मक्खनलाल शास्त्री 'तिलक'
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