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पुरुषार्थसिद्धथुपाय
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भोगोपभोगपरिमाणवत अतिथिसंविभाग व्रत सल्लेखना का स्वरूप अतीचारों की संख्या तप का विधान मुनिवृत्ति धारण करने का उपदेश षट् आवश्यक गुप्तित्रय पंच समिति --
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दश धर्म -
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३९३ ३९४ ३९५ ३९८ ४०७ ४१५ ४१७ ४१७
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द्वादश अनुप्रेक्षा परिषह जय मुनिधर्म गृहस्थ को भी पालन करना चाहिये गृहस्थों को भी मुनिपद धारण करना चाहिये रत्नत्रय कर्मबन्ध का कारण नहीं है रत्नत्रय और राग का फल बंध का कारण रत्नत्रय से बंध क्यों नहीं होता रत्नत्रय तीर्थंकरादि प्रवृतियों का भी बंधक नहीं है सम्यक्त्व को देवायु का कारण क्यों कहा गया है भिन्न २ कारणों से भिन्न २ कार्य होते हैं। रत्नत्रय मोक्ष लाभ कराता है परमात्मा की मोक्षावस्था परमात्मा का स्वरूप जैन नीति अथवा अपेक्षा विवेचना ग्रन्थ समाप्त करते हुए आचार्य अपनी लघुता बताते हैं ""
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