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________________ [ १२३ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm बीजं दुःखस्स अट्टविहं ।" इसीप्रकार दो गाथायें और हैं, जिनमें अज्ञानचेतनाओंका वर्णन है ( गाथा-४१७, ४१८, ४१६) । इन्हीं गाथाओंके आशयको स्वामी अमृतचंद्रसूरिने स्पष्ट किया है । वे लिखते हैं-"ज्ञानाज्ञानभेदेन चेतना द्विविधा भवति, इयं तावत् अज्ञानचेतना गाथात्रयेण कथ्यते,-उदयागतं शुभाशुभं कर्म वेदयन्न-नुभवन् सन्नज्ञानिजीवः स्वस्थभावाभ्रष्टो भूत्वा मदीयं कर्मेति भणति । मयाकृतं कर्मेति च भणति । स जीवः पुनरपि तदष्टविध कर्म बध्नाति । कथंभूतं ? बीजकारणं । कस्य ? दुःखस्य ।” यहांपर कर्मचेतना और कर्मफलचेतनाको अज्ञानचेतनाके नामसे प्रगट किया गया है। यदि इन दोनों चेतनाओंका स्वामी सम्यग्दृष्टि जीव भी होता, तो “अज्ञानिजीवः स्वस्थभावाद्मष्टो भूत्वा" ये विशेषण उसके लिये कभी नहीं आ सकते थे । सम्यग्दृष्टि यदि वाह्यपदार्थों में भी उपयुक्त हो, तो भी वह स्वस्थभाव ( आत्मीयभाव )से भ्रष्ट नहीं कहा जा सकता, और न वह अज्ञानीके नामसे ही कहा जाता है । अज्ञानी संज्ञा मिथ्यादृष्टिके लिये ही सर्वत्र आती है । यथा-"एकः सम्यग्दृगात्मासौ केवलं ज्ञानवानिह । ततो मिथ्यादृशः सर्वे नित्यमज्ञानिनो मताः ॥” आगे चलकर तात्पर्यवृत्तिकार दोनों चेतनाओंके अर्थको और भी विशद करते हैं; वे लिखते हैं-"कर्मचेतना कोर्थः ? इतिचेत मदीयं कर्म मयाकृतं कर्मेत्याद्या. ज्ञानभावेन ईहापूर्वकमिष्टानिष्टरूपेण निरुपराग शुद्धात्मानुभूतिच्युतस्य मनोवचनकायव्यापारकररणं यत् सो बंधकारणभूता कर्मचेतना भण्यते।” कर्मफलचेतना कोर्थः ? इतिचेत् स्वस्थभावरहितेन अज्ञानभावेन यथासम्भवं व्यक्काव्यवस्वभावेन ईहापूर्वकमिष्टानिष्टविकल्परूपेण हर्षविषादमयं सुखदुःखानुभवनं यत सा बंधकारणभूता कर्मफलचेतना भण्यते ।” अर्थात्-यह मेरा कर्म है, मैंने इस कर्मको किया है, इसप्रकार ईहापूर्वक इष्ट-अनिष्टरूप अज्ञानभावसे उपरागरहित शुद्धात्मानुभूतिसे च्युत जीवके मन-वचन-कायका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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