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________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय ] [ ११३ बीत गया आदि । सब द्रव्ये पयपि धारण करती हैं और वे पर्यायें समय समयमें होती हैं । इसलिये उन पर्यायोंके साथ भी समय शब्दका प्रयोग होता है; तथा उन नाना पर्यायोंके बीतनेपर महीना वर्ष आदि उपचरित कालका प्रयोग होता है। बिना मूल पदार्थकी सत्ताके उपचार हो नहीं सकता । यदि सूर्यको न माना जाय तो किसी तेजस्वी राजाको यह नहीं कहा जा सकता कि 'आप तो सूर्य हैं और मैं आपके सामने खद्योत ( जुगनू ) हूं।' यह व्यवहार तभी होता है कि जब सूर्य और खद्योतकी सत्ता कहीं पर है, बिना उनके इन नामोंका प्रयोग राजाकी तेजस्विताके लिये किया ही नहीं जा सकता। कोई तेजस्वी सूर्य पदार्थ है तथा मंद तेजवाला खद्योत पदार्थ है, तभी उनका प्रयोग दूसरे तेजवाले पदार्थमें उपमानरूपसे अथवा अन्य निमित्तसे किया जाता है । यदि कहा जाय कि उस राजाको ही वास्तवमें सूर्य मान लिया जाय अथवा उससे मंद तेजवालेको ही खद्योत मान लिया जाय और वह उपचरित प्रयोग न समझा जाय, तो फिर उस राजाको अथवा उस पुरुषको सभी पुरुष सूर्य और खद्योत क्यों नहीं कहते ? जो उपमा देता है, वही क्यों कहता है ? इसीप्रकार काल वास्तवमें स्वतन्त्र द्रव्य है, उसके माननेपर ही लोकमें काल ( समय ) का व्यवहार प्रचलित है; अन्यथा इतना प्रबल व्यवहार कभी नहीं हो सकता। यदि कहा जाय कि कालको स्वतन्त्र द्रव्य नहीं माना जाय किंतु जिन समस्त द्रव्योंके परिणमनके साथ कालका व्यवहार होता है, उन्हीं समस्त द्रव्योंका ही वह स्वरूप समझा जाय, तो फिर कालका स्वतन्त्र प्रयोग और द्रव्योंके साथ जुदा प्रयोग नहीं होना चाहिये । काल का स्वतन्त्र प्रयोग द्रव्योंका साथ छोड़कर भी होता है; जैसे एक वर्ष काल वीत गया। यह प्रयोग किसी द्रव्यके साथ अथवा किसी द्रव्यके परिणमन की अपेक्षासे नहीं किया गया है, किंतु स्वतन्त्र है। इसीप्रकार जहां द्रव्योंके परिणामोंके साथ कालका प्रयोग होता है, वहां भी जुदा ही होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001104
Book TitlePurusharthsiddhyupay Hindi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1995
Total Pages460
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size11 MB
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