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________________ ८० : प्रमाण-परीक्षा नाभाव सुनिश्चित है। साधनके त्रैरूप्य आदि लक्षण साधनाभासमें भी पाये जाते हैं, अतः वे लक्षण सदोष लक्षण हैं। यहाँ यही स्पष्ट किया जाता है। सांख्यों और बौद्धोंका मत है कि साधन वह है जो त्रिरूप अर्थात विलक्षण है। वे तीन रूप इस प्रकार हैं-१. सपक्षमें रहना, २. पक्षका धर्म होना और ३. विपक्षसे व्यावृत्त होना। इन तीन रूपोंसे सम्पन्न साधन ही साध्यका साधक होता है। उनका यह मत ठीक नहीं है, क्योंकि त्रिलक्षणमें साधनपना सिद्ध नहीं होता। 'वह श्याम है, क्योंकि उसका पुत्र है, अन्य पुत्रोंकी तरह' यह साधनाभासका उदाहरण है। यहाँ भी वे तीनों रूप विद्यमान हैं । हेतु सपक्ष-अन्य पुत्रोंमें श्यामपनाके साथ मौजूद है, पक्ष--गर्भस्थ पुत्रमें भी वह पाया जाता है तथा विपक्षकिसी अन्यके गौर पूत्रोंमें वह अविद्यमान है। इस तरह सपक्षसत्त्व, पक्षधर्मत्व और विपक्षासत्त्व ये तीनों रूप साधनाभासमें भी पाये जानेसे साधनलक्षण नहीं हो सकते । __ शंका–साध्यके न रहनेपर पूर्णतया साधनका अभाव न होनेसे उदाहरणगत साधन सम्यक् साधन नहीं है, क्योंकि उसीके गर्भस्थ गौर पूत्र में भी हेतुका सद्भाव पाया जाता है ? समाधान-तब तो साध्यकी निवृत्ति होनेपर सम्पूर्णतया साधनकी निवृत्तिके निश्चयरूप एकलक्षणको ही साधन मानना चाहिए, सपक्षसत्त्व और पक्षधर्मत्व इन दो रूपोंको और मानना निरर्थक है। उसी साध्य-साधनको विपक्षमें सम्पूर्ण निवृत्तिको ही स्याद्वादी अन्यथानुपपत्तिनियमनिश्चयके रूपमें साधनका लक्षण बतलाते हैं, क्योंकि उसके सद्भावमें और पक्षधर्मत्वादिके अभावमें भी साधन अपने साध्यका साधक प्रतीत होता है। 'एक मुहर्त बाद शकटका उदय होगा, क्योंकि इस समय कृत्तिकाका उदय हो रहा है' इत्यादि साधन पक्षधर्मता आदिके अभावमें भी साध्यके गमक देखे जाते हैं। इसलिए पक्षधर्मता साधनका लक्षण नहीं है। शंका-उक्त अनुमानमें आकाश अथवा काल धर्मी (पक्ष) है और उसमें उदय होनेवाले शकटका सद्भावरूप साध्य तथा कृत्तिकाके उदयका सद्भावरूप साधन दोनों विद्यमान रहते हैं, अतः 'कृत्तिकाका उदय' पक्षधर्म ही है । पक्षधर्मताके सद्भावमें ही वह साध्यका अनुमापक है ? समाधान-इस प्रकारसे तो पृथ्वीको पक्ष बनाकर समद्र में अग्निके सद्भावरूप साध्यको सिद्ध करनेके लिए रसोईघरके धूमके सद्भावरूप साधनको भी कहा जा सकता है, क्योंकि वह भी पक्षधर्म है। फलतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001102
Book TitlePramana Pariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, P000, & P035
File Size13 MB
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