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________________ प्रस्तावना : ८१ महानसके धूमसे समुद्रमें अग्निका अनुमान हो जाय और इस तरह कोई भी हेतु अपक्षधर्म नहीं रहेगा—सभी हेतु हो जायेंगे । शंका-बात यह है कि इस तरह साधनमें पक्षधर्मता सिद्ध हो जाने पर भी साध्यको सिद्ध करनेकी सामर्थ्य सभीमें नहीं हो सकती, क्योंकि सभीमें अविनाभावके नियमका निश्चय नहीं है। जिसका जिसके साथ अविनाभावके नियमका निश्चय है वही उसका हेतु है, अन्य नहीं ? __ समाधान-तो फिर उसी अविनाभावके नियमके निश्चयकोही साधनका लक्षण मानना युक्त है । पक्षधर्मता आदिको नहीं, वह अप्रयोजक है। शंका-शकटका उदय कृत्तिकाके उदयका भावी कारण है, क्योंकि उसका उसके साथ अन्वय तथा व्यतिरेक है । भविष्यमें होनेवाले शकटोदयके अपने कालमें होनेपर ही कृत्तिकाका उदय होता है और न होनेपर नहीं होता । इस प्रकार भावि शकटोदय और कृत्तिकोदयमें अन्वय और व्यतिरेकसे कार्यकारणभाव सिद्ध होता है। जैसे अतीत और वर्तमानमें कार्यकारणभाव होता है। 'भरणीका उदय हो चुका है, क्योंकि कृत्तिकाका उदय हो रहा है' इस अनुमानमें अतीत भरणीका उदय कारण है और कृत्तिकाका उदय उसका स्पष्टतया कार्य है, क्योंकि अतीत भरणीका उदय अपने कालमें होनेपर ही कृत्तिकाका उदय होता है और न होनेपर नहीं होता है, इस प्रकार अन्वय और व्यतिरेकसे उनमें कार्यकारणभाव जिस प्रकार सिद्ध है उसी प्रकार भविष्यत् शकटोदय और वर्तमान कृत्तिकोदय रूप साध्य-साधनोंमें कार्यकारणभाव सिद्ध होता है। न्याय (युक्ति) दोनोंका समान है। यहाँ यह नहीं कहा जा सकता कि एक कृत्तिकोदय कार्यके भावि और अतीत दो कारणोंका होना विरुद्ध है, क्योंकि दो भिन्न देशोंकी तरह दो भिन्न कालोंमें भी सहकारिता हो सकती है। एक साथ एक कार्यका करना सहकारितापर ही आधृत है, एक काल अथवा एक देशपर नहीं । यहाँ यह भी नहीं कि अतीत भरणी-उदय और भावि शकटोदय कृत्तिकोदयके उपादान कारण हैं, क्योंकि पूर्ववर्ती कृत्तिकाका क्षण, जो उदयको प्राप्त नहीं है, उसका उपादान कारण सुनिश्चित है ? समाधान-प्रज्ञाकरकी उक्त शङ्का युक्त नहीं है, क्योंकि उक्त प्रकारको प्रतीति नहीं होती। जो कार्यके कालमें नहीं है, ऐसे अतीत और भाविको उसका कारण माननेपर अतोततम और भावितमको भी कारण होनेसे रोका नहीं जा सकता। यदि कहा जाय कि उनका कार्यके साथ सम्बन्धविशेष न होनेसे उन्हें कारण नहीं माना जा सकता है, तो इसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001102
Book TitlePramana Pariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, P000, & P035
File Size13 MB
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