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७६ : प्रमाण-परीक्षा
__ शंका--श्रुत अथवा अनुमित अर्थमें होनेवाली स्मृति विशद हो सकती है ? ___ समाधान-यह शंका भी ठीक नहीं है, क्योंकि 'वह' इस प्रकारके उल्लेखसे सभी स्मृतियोंका संग्रह है। अर्थात् स्मृति चाहे अनुभूतविषयक हो, चाहे श्रुतविषयक और चाहे अनुमितविषयक, सभीमें 'वह' का उल्लेख रहता है, अनुभूतविषयकमें ही नहीं।
यह स्मृति अविसंवादिनी होनेसे प्रत्यक्षकी ही तरह प्रमाण है । यदि किसी स्मृतिमें विसंवाद पाया जाता है तो वह स्मृत्याभास है, जैसे प्रत्यक्षाभास ।
प्रत्यभिज्ञान-विमर्श _ 'वही यह है' इस प्रकारके ज्ञानका नाम संज्ञा है। उसीको प्रत्यभिज्ञा कहते हैं। अथवा 'उसी तरहका यह है' इस प्रकारके ज्ञानका नाम भी संज्ञा है । यह एकत्व और सादृश्यको विषय करनेकी अपेक्षा दो प्रकारकी है । निश्चय ही प्रत्यभिज्ञा या प्रत्यभिज्ञानके दो भेद हैं-१. एकत्वप्रत्यभिज्ञान
और २. सादृश्यप्रत्यभिज्ञान । 'वही यह है' इस प्रकारके एकत्वविषयक ज्ञानको एकत्वप्रत्यभिज्ञान और 'उसीके समान यह है' इस प्रकारके सादृश्यविषयक बोधको सादृश्यप्रत्यभिज्ञान कहते हैं।
शंका-'वही' यह अतीतको विषय करनेवाला ज्ञान स्मृति है और 'यह' इस प्रकार होने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष है, अतः प्रत्यभिज्ञा स्मति और प्रत्यक्ष इन दो ज्ञानात्मक ही है । इसी प्रकार 'उसीके समान है' यह ज्ञान स्मरण है तथा 'यह' इस प्रकारका वर्तमानविषयक ज्ञान प्रत्यक्ष है, अतः यह सादृश्यप्रत्यभिज्ञान भी स्मरण और प्रत्यक्ष इन दो ज्ञानरूप है। इसलिए प्रत्यभिज्ञान नामका कोई एक पृथक् ज्ञान (प्रमाण) नहीं है ? । ___ समाधान-यह कथन युक्त नहीं है, क्योंकि स्मरण और प्रत्यक्षसे उत्पन्न होने वाला तथा अतीत तथा वर्तमान इन दो अवस्थाओंमें रहनेवाले एक द्रव्यको विषय करनेवाला प्रत्यभिज्ञान उनसे पृथक् एक ज्ञान अच्छी तरह अनुभवमें आता है। स्पष्ट है कि 'वह' इस प्रकारका स्मरण उक्त एकद्रव्यको विषय नहीं करता, वह तो मात्र अतीत अवस्थाको ही विषय करता है। इसी प्रकार 'यह' इस तरहका ज्ञान भी उस एक द्रव्यको नहीं जानता, वह मात्र वर्तमान पर्यायको ही जानता है। किन्तु स्मरण और प्रत्यक्ष दोनोंसे उत्पन्न होनेवाला, जोड़रूप, दोनों पर्यायोंको लिए हुए द्रव्यका निश्चायक एकत्वविषयक प्रत्यभिज्ञान उन दोनों ज्ञानोंसे
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