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प्रस्तावना : ६१
द्वारा ज्ञात पदार्थों में संशयादि नहीं होते । अतः जिसने व्याप्ति ग्रहण की है उसे सकलयोगी उपदेश देता है, यह प्रथम विकल्प सिद्ध नहीं होता। दूसरा विकल्प भी युक्त नहीं है, क्योंकि जिसने व्याप्ति ग्रहण नहीं की, उसके लिए अनुमान नहीं होता, अन्यथा जिस किसीके लिए भी अनुमानका प्रसंग आयेगा। इस प्रकार योगीके उपदेश असम्भव है और उसके अभावमें परार्थानुमान भी सम्भव नहीं है तथा परार्थानुमानके अभावमें स्वार्थानुमान भी उसके नहीं बन सकता है। और उसके न बनने पर सकलयोगिप्रत्यक्षके द्वारा व्याप्तिके ग्रहणकी बात युक्तिसे सिद्ध नहीं होती । तात्पर्य यह कि सकल देश और सकल कालवर्ती साध्य-साधनोंमें व्याप्तिका निश्चय प्रत्यक्षसे नहीं हो सकता।
शङ्का-प्रत्यक्ष (अन्वय) और अनुपलम्भ (व्यतिरेक) से साध्य-साधनों की व्याप्तिका निश्चय सम्भव है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि जब प्रत्यक्षसे व्याप्तिका ग्रहण उक्त प्रकारसे निराकृत हो जाता है तो प्रत्यक्ष और अनुपलम्भसे भी व्याप्तिका निर्णय नहीं हो सकता । प्रत्यक्ष तो प्रत्यक्ष है ही, अनुपलम्भ भी प्रत्यक्षका ही एक लक्षण है।
शङ्का–कारणानुपलम्भसे कार्यकारणभाव और व्यापकानुपलम्भसे व्याप्य व्यापकभाव, जो दोनों ही व्याप्तिरूप हैं, अशेषरूपसे अवगत हो जाते हैं तथा कारणानुपलम्भ और व्यापकानुपलम्भ दोनों अनुमान हैं, अतः अनुमानसे साध्य और साधनगत व्याप्तिका निश्चय हो जायेगा । वह इस प्रकार है-'जितना कोई धूम है वह सब अग्निजन्य है, तालाब आदिमें अग्निके अनुपलम्भसे धूमका भी अभाव पाया जाता है', यह कारणानुपलम्भानुमान है । 'जितनी शिंशपाएँ हैं वे सब वृक्ष हैं, वृक्षके अभावमें शिशपाका भी अभाव देखा जाता है', इस प्रकार यह व्यापकानुपलम्भ हेतु है। इस तरह साध्य और साधनमें रहनेवाली व्याप्तिका ज्ञान अनुमानसे सिद्ध है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि अनुमानसे व्याप्तिका ज्ञान मानने पर अनवस्थादोष आता है। कारणानुपलम्भ और व्यापकानुपलम्भ दोनों साधनोंकी अपने साध्योंके साथ रहनेवाली व्याप्तिका निश्चय पूर्वोक्त दोष आनेके कारण प्रत्यक्षसे तो सम्भव नहीं है। और अन्य अनुमानसे उसका निश्चय स्वीकार करने पर निश्चय ही अनवस्था आयेगी। तात्पर्य यह है कि व्याप्तिज्ञानपूर्वक अनुमान होता है और जिस अनुमानसे प्रकृत अनुमान
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