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६० : प्रमाण-परीक्षा
उक्त व्याप्तिको जानता है या सकलयोगिप्रत्यक्ष ? दोनों ही विकल्पों में अनुमान व्यर्थ हो जायेगा, क्योंकि देशयोगिप्रत्यक्ष और सकलयोगिप्रत्यक्षसे सभी साध्यों और साधनोंका साक्षात्कार हो जाने पर अनुमानकी सार्थकता नहीं रहती ।
यदि कहें कि दूसरोंके लिए अनुमान सार्थक है । अर्थात् जो अल्पज्ञ हैं उन्हें अनुमान आवश्यक है, तो यह कथन भी सम्यक् नहीं है, क्योंकि परार्थानुमान स्वार्थानुमानपूर्वक होता है । जिसे स्वार्थानुमान होता है उसे ही परार्थानुमान होता है और योगिके स्वार्थानुमान होता नहीं है, तब स्वार्थानुमानके अभाव में उसे परार्थानुमान कैसे हो सकता है ।
यदि माना जाय कि सकलयोगी परका अनुग्रह करनेके लिए प्रवृत्ति करता है और परका अनुग्रह शब्दप्रयोगरूप परार्थानुमानके बिना हो नहीं सकता, अतः योगीके परार्थानुमान सिद्ध होता है और परार्थानुमान बिना स्वार्थानुमान हो नहीं सकता, इसलिए परको उपदेश देनेके लिए प्रवृत्त योगीके स्वार्थानुमान भी सिद्ध ही है, यह मान्यता भी संगत नहीं है, क्योंकि यहाँ दो विकल्प उत्पन्न होते हैं । वह योगी स्वार्थानुमानसे जब चार आर्यसत्योंका निश्चयकर परार्थानुमानसे परके लिए उनका प्रतिपादन करता है, तो परने साध्य - साधनकी व्याप्ति ग्रहण की है या नहीं ? यदि की है, तो यह बताना आवश्यक है कि उसने किससे व्याप्ति ग्रहण की है ? इन्द्रियप्रत्यक्ष, स्वसंवेदनप्रत्यक्ष और मानसप्रत्यक्ष इन तीन प्रत्यक्षोंसे उसका ग्रहण असम्भव है, क्योंकि वह उनका विषय नहीं है । अर्थात् समस्त देशों और समस्त कालोंके साध्य-साधनों में रहनेवाली व्याप्ति उन नियत देश और नियत काल विषयक प्रत्यक्षोंसे गृहीत नहीं हो सकती । अगर कहें कि योगिप्रत्यक्षसे वह व्याप्तिका ग्रहण करता है, क्योंकि वह भी एकदेशयोगी है, तो यह कथन युक्त नहीं है, कारण कि देशयोगीको जितने साध्य-साधनोंका योगिप्रत्यक्ष होगा, उतने साध्यसाधनोंमें उसके लिए अनुमान व्यर्थ है । तात्पर्य यह कि जब योगिप्रत्यक्षसे ही साध्य-साधनोंका ज्ञान हो जायेगा, तो परके लिए न व्याप्तिग्रहणकी आवश्यकता रहेगी और न अनुमानकी । यदि स्पष्ट ज्ञात पदार्थोंमें भी अनुमान स्वीकार किया जाय, तो सकलयोगीको भी सभी स्पष्ट ज्ञात पदार्थों में अनुमानका प्रसंग आयेगा । यहाँ यह कहना भी युक्त नहीं कि संशयादिके निराकरण के लिए उनमें अनुमान हो सकता है, क्योंकि योगिप्रत्यक्षसे अवगत पदार्थों में संशयादि नहीं होते, जैसे सुगतके प्रत्यक्ष
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