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५४ : प्रमाण-परीक्षा अग्निका प्रत्क्ष अनुमानपूर्वक होता है, जैसे रूपसे रसका अनुमान कर उसके पानमें प्रवृत्त हुए व्यक्तिको रसका रासनप्रत्क्ष अनुमानपूर्वक होता है। इसी तरह शब्दसे स्वच्छ पेयकी बात सुनकर उसे पीनेपर हुआ रासनप्रत्यक्ष शाब्दपूर्वक होता है । अर्थापत्तिसे दूधकी सम्पोषण-शक्तिको ज्ञातकर उसमें--दुग्धपानमें प्रवृत्त हुए पुरुषको होनेवाला रासन-प्रत्यक्ष अर्थापत्तिपूर्वक होता है। गायकी सदृशतासे गवयका ज्ञान (उपमान) करके उसका व्यवहार करनेवाले अर्थात् देखनेवालेको जो गवयका चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है वह उपमानपूर्वक है। अभावप्रमाणसे घरमें सांपका अभाव जानकर प्रवेश करनेवाले व्यक्तिको जो सांपके अभावका प्रत्यक्ष होता है वह अभावपूर्वक स्पष्टतया होता है । इस प्रकार प्रत्यक्ष ही गौण (अनुमानादिपूर्वक) होनेसे अप्रमाण सिद्ध होता है, अनुमानादिक नहीं, क्योंकि वे अगौण (प्रत्यक्षसे पूर्ववर्ती) हैं। पूर्ववर्ती प्रधान होता है और उत्तरवर्ती गौण । अतः चार्वाकके उपर्युक्त कथनसे उसकी वैसी ही दशा होती है जैसी उस व्यक्तिकी होती है जो कहता तो है कि 'सूखेमें गिरूँगा, पर गिर जाता है कीचड़में' । अर्थात् चार्वाक प्रत्यक्षको अनुमानादिसे पूर्ववर्ती होनेसे प्रमाण सिद्ध करना चाहते थे, किन्तु वह अनुमानादिसे उक्त प्रकार उत्तरवर्ती भी सिद्ध होता है, तब उनकी युक्तिके अनुसार वह अप्रमाण सिद्ध होगा और अनुमानादि प्रमाण । ___ यदि चार्वाकोंका यह अभिप्राय हो कि अनुमान, आगम, अर्थापत्ति, उपमान और अभावप्रमाणपूर्वक प्रत्यक्ष नहीं होता, क्योंकि वह उनके अभावमें भी नेत्रेन्द्रिय आदि सामग्री मात्रसे उत्पन्न होता हुआ प्रसिद्ध है और उक्त सामग्रीके अभावमें वह नियमसे नहीं होता। अर्थात् नेत्रेन्द्रिय आदि सामग्रीके साथ प्रत्यक्षका अन्वय-व्यतिरेक है, अनुमानादि प्रमाणोंके साथ नहीं ?
उनका यह अभिप्राय सम्यक् नहीं है, क्योंकि उक्त रीतिसे तो अनुमान आदि प्रमाण भी प्रत्यक्षपूर्वक सिद्ध नहीं हो सकेंगे। लिङ्ग, शब्द, अनन्यथाभाव, सादृश्य, प्रतियोगिस्मरण आदि अपनी-अपनी योग्य सामग्रीके होनेपर ही वे होते हैं। स्पष्ट है कि प्रत्यक्षके होनेपर भी उनकी लिङ्गादि प्रतिनियत सामग्रीके न होनेपर वे नहीं होते। तात्पर्य यह है कि लिङ्गके साथ अनुमानका, शब्दके साथ शाब्दका, अनन्यथाभावके साथ अर्थापत्तिका, सादृश्यके साथ उपमानका और प्रतियोगिस्मरणके साथ अभावका अन्वय-व्यतिरेक है अर्थात् लिङ्गादिके होनेपर
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